Samkalin Srijan Sandarbha (Volume-2)
समकालीन सृजन सन्दर्भ-2 -
समकालीन लेखन साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में छपकर पहले चर्चित होता है। पुस्तक रूप में उसका प्रकाशन तो बाद में होता है। हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार राजेन्द्र यादव के सम्पादन में प्रकाशित लोकप्रिय कथा मासिक हंस में मई, 1991 से लगातार जारी भारत भारद्वाज के चर्चित स्तम्भ 'समकालीन सृजन-सन्दर्भ' के पीछे भी साहित्य की एक गौरवपूर्ण विरासत, इतिहास एवं पृष्ठभूमि है। उनकी दृष्टि में मासिक 'कल्पना' एवं साप्ताहिक 'दिनमान' जैसी पत्रिकाएँ रही हैं, जहाँ कभी समकालीन लेखन के विशिष्ट को रेखांकित करने की परम्परा रही है और जिन पत्रिकाओं में कभी अज्ञेय, रघुवीर सहाय, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना एवं मार्कण्डेय समकालीन लेखन का उल्लेख करते टिप्पणी करते थे। अब जब ये पत्रिकाएँ बन्द हो गयीं, अच्छे लेखन, साहित्यिक प्रवृत्तियों एवं वाद-विवाद-संवाद को इस स्तम्भ के माध्यम से हिन्दी पाठकों के सामने लाने की चिन्ता ही भारत भारद्वाज का मुख्य सरोकार रहा है। यह स्तम्भ समकालीन लेखन का दस्तोवज़ या डॉक्यूमेंटेशन भर नहीं है, बल्कि वह आईना है जिसमें तमाम शोरगुल एवं कोलाहल के बीच साहित्य का बनता-बिगड़ता चेहरा देखा जा सकता है।
पुस्तक के इन दो खण्डों में 'हंस' में प्रकाशित उनके स्तम्भ की समीक्षात्मक टिप्पणियाँ संकलित हैं। कहना न होगा भारत भारद्वाज ने बिना किसी पूर्वाग्रह के लघुपत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाओं के माध्यम से आज के समय के यथार्थ, स्वप्न, आकांक्षा और 'स्पेस' को ढूँढ़ने की कोशिश की है। इस स्तम्भ की एक बड़ी सफलता और सार्थकता यह भी रही है कि आज दर्जनों लघुपत्रिकाओं ने इसी तरह का स्तम्भ अपनी पत्रिकाओं में शुरू किया है। दस वर्षों से लगभग यह नियमित स्तम्भ, बीच में कभी-कभार बन्द होने की अफ़वाह के बीच यदि आज भी जारी है तो निश्चित रूप से इसका श्रेय हिन्दी के लेखकों, पाठकों, प्रकाशकों एवं 'हंस' पत्रिका के सम्पादक की सदास्यता को है।