Samvaidhanik Dayitva Evam Karyanvayan

In stock
Only %1 left
SKU
9789369443260
Rating:
0%
As low as ₹1,420.25 Regular Price ₹1,495.00
Save 5%
15 अगस्त सन् 1947 को जब देश अंग्रेज़ों के चंगुल से आज़ाद हुआ तब देश में छोटी-बड़ी कुल मिलाकर 562 देशी रियासतें थीं जिन्होंने स्वतंत्र भारत के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के अनुरोध पर अपने सभी अधिकार त्यागकर भारत में विलय होना स्वीकार किया। प्राप्त पुष्ट साक्ष्यों के आधार पर इनमें से बहुत सारी रियासतों की शासन व्यवस्था, शिक्षा आदि का माध्यम हिंदी भाषा थी, जिसका प्रयोग बहुत पहले से होता आ रहा था। उत्तर भारत के हिंदू राज्यों में हिंदी की सर्वत्र यही स्थिति थी। ऐसे राज्यों के दरबार की ही नहीं, राजपरिवारों की भाषा भी हिंदी ही थी| हिंदी कवियों-साहित्यकारों को पूरा सम्मान-प्रोत्साहन और प्रश्रय प्राप्त था और सबसे मुख्य बात यह थी कि अधिकांश भूपतियों सहित राजपरिवारों के सदस्य भी हिंदीप्रेमी तथा हिन्दीसेवी थे, बड़ी सुंदर कविताएँ किया करते थे। बीसवीं शताब्दी में ही स्वाधीनता प्राप्ति से पूर्व मध्य भारत तथा राजस्थान की कई रियासतें अपना कामकाज हिंदी में करती थीं। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद एक विचित्र स्थिति दिखाई पड़ी। कई ऐसे विभाग थे जो पहले अपना काम हिंदी में करते थे, रियासतों के विलय हो जाने पर तथा आयकर आदि संबंधी कार्य केंद्रीय विभागों के अंतर्गत आ जाने पर, अंग्रेज़ी में करने लगे। यह परंपरा कहाँ से आरंभ हुई, कहना मुश्किल है किंतु समय के साथ और बलवती होती गई। भाषा के नाम पर विचारों की लड़ाई प्रारम्भ हुई और एक भाषा जिसे राष्ट्रभाषा का नाम दिया जाने लगा, उस पर चर्चाएँ जोर पकड़ने लगीं। आख़िरकार मामला संसद तक पहुँचा और भाषा व्यवस्था मज़बूत करने के नाम पर बहस प्रारंभ हुई। कई बार प्रयास किए गए और अंततः जो हिंदी राष्ट्रभाषा के प्रश्न के साथ संसद में खड़ी हुई थी, 14 सितंबर 1949 को एकमत से राजभाषा के रूप में अंगीकार की गई। आज जब राजभाषा के रूप में स्थापित हुए हिंदी का 75 वर्षों से अधिक का समय बीत चुका है, इसने अपना दायरा भी बढ़ाया है। देश की राजभाषा से आगे वह वैश्विक स्तर पर शीर्ष की भाषाओं में शुमार हो चुकी है। उसका वैश्विक कद हर क्षेत्र में विस्तार पा चुका है। इस पुस्तक में हिंदी के राजभाषा बनने और वर्तमान समय तक विस्तार पाने की यात्रा का उल्लेख है, साथ ही राजभाषा के रूप में हिंदीप्रेमियों के कार्य करने की दिशा व दशा का विस्तृत वर्णन किया गया है। सरकारी कार्यालय के लिए राजभाषा में कार्य करने के आदेश, निर्देश, रिपोर्टिंग आदि संबंधी जानकारी भी इस पुस्तक के माध्यम से पाठकों को प्राप्त होगी। ऐतिहासिक घटनाओं से होते हुए तकनीकी प्रगति तथा वैश्विक पहुँच तक की यात्रा का समेकित वर्णन उपलब्ध कराने का यह गिलहरी प्रयास पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी होगा, ऐसा दृढ़ विश्वास है।
ISBN
9789369443260
sfasdfsdfadsdsf
Write Your Own Review
You're reviewing:Samvaidhanik Dayitva Evam Karyanvayan
Your Rating
Copyright © 2025 Vani Prakashan Books. All Rights Reserved.

Design & Developed by: https://octagontechs.com/