Sangam Ki Reti Par Chalees Din

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9788181430106
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"संगम की रेती पर चालीस दिन - इस सदी के प्रथम महाकुम्भ के लिए प्रशासन की तरफ़ से तो कई तैयारियाँ की गयी लेकिन उस नगरी के लोगों ने भी अपने स्तर पर इसकी उम्दा तैयारी कीI लगभग 1200 एकड़ जमीन पर महाकुम्भ नगरी बसायी गयी। टेन्ट और बड़े-बड़े आकर्षक पण्डालों की यह नगरी किसी विकसित नगरी से कम नहीं प्रतीत हो रही थी। ग्यारह सेक्टरों में बँटी इस नगरी में रेत पर चकर्ड प्लेटों की सड़के हैं, तो पीने के पानी के लिए पेयजल की उचित व्यवस्था भी। अस्पताल हैं, तो डाकघर और तारघर भी। यह नगरी पूरी तरह से 'हाइटेक' है। ई-मेल और इंटरनेट सुविधाएँ क़दम-क़दम पर हैं। रात होते ही यह नगरी कुछ इस तरह जगमगा उठती है, मानों हम किसी महानगर में हों। बाज़ार हैं, तो बाज़ार में वह सब कुछ है जो एक आम जीवन के लिए ज़रूरी है। पूरी नगरी में कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि घर से दूर, इस पावन संगम की रेती पर ज़िन्दगी थम-सी जायेगी और इस थमी हुई ज़िन्दगी में स्मृतियाँ सदा के लिए बन जायेंगीI विशाल और आलोकिक कुम्भ की आस्था से जुडी देवताओं की इस नगरी को दृष्टि में भर लेती है यह किताबI इस पुस्तक के रूप में पाठकों को एक आध्यत्मिक अनुभव प्राप्त होता हैI "
ISBN
9788181430106
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