Sankalon Mein Qaid Kshitij

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"साँकलों में क़ैद क्षितिज बरसों बरस से दमन और अत्याचार की बेड़ियों में जकड़ा, छटपटाता, पल-पल अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए जिसकी ज़मीन पर तिलमिलाता, चीख़ता दक्षिण अफ्रीका ।... ख़ून के इतिहास लिखे गये, तो कागज़ पर क्रान्ति गीत । अफ्रीका अब भी गीतों और कविताओं का देश है। अफ्रीकी अब भी कविता को क्रान्ति का सबसे बड़ा हथियार मानते हैं। आदमी के ख़ून से लिखी गयी इन कुछ दक्षिण अफ्रीकी कविताओं का अनुवाद किया है प्रभा खेतान ने और इस संकलन को नाम दिया है साँकलों में क़ैद क्षितिज । ये उस क्षितिज की कविताएँ हैं, जो साँकलों की क़ैद में जकड़ा है, छटपटा रहा है, पर सर्व मुक्त है क्षितिज, इसलिए एक दिन उसे मुक्त होना ही है । मुक्ति की साँस की चाह से भरी ये कविताएँ मन-मस्तिष्क को चीरकर रख देती हैं और आँखों में दर्द का अथाह दरिया बह पड़ता है। ये कविताएँ दबे-घुटे अफ्रीकी जन की ही नहीं हैं, बल्कि इनकी संवेदना से दुनिया के हर कोने का दमित-दलित जन अपने पूरे-पूरे आवेग के साथ जुड़ा है इन कविताओं के अनुवाद में प्रभा खेतान ने मूल भावना को पकड़ा है और पीड़ा के ज्वार को व्यक्त करने में प्रयुक्त होने वाली वास्तविक भाषा में उसे अभिव्यक्त किया है। काव्य के मर्म की गहरी समझ रखने वाली प्रभा खेतान का सार्थक श्रम है यह संकलन। "
ISBN
9789390678068
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