Sarjak Man Ka Path

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"‘सर्जक मन का पाठ’ प्रसिद्ध कथाकार गोविन्द मिश्र को तीन पीढ़ियों के कुछ प्रमुख लेखकों द्वारा लिखे गये पत्रों का संग्रह है, जिनका वैशिष्ट्य इस बात में है कि उनमें पत्र-लेखकों अथवा गोविन्द मिश्र के निजी जीवन, समस्याओं तथा राग-विराग की चर्चा अत्यन्त न्यून है। अधिकांशतः वे गोविन्द मिश्र की कृतियों पर ही केन्द्रित हैं। जहाँ कुछ व्यक्तिगत चर्चा है भी, उसका सम्बन्ध लेखकों की अपनी सर्जनात्मक समस्याओं से ही अधिक है। इन पत्रों को पढ़ने के दौरान पाठक में गोविन्द मिश्र की रचनाओं को ही नहीं, किसी भी साहित्यिक कृति को समझने की अन्तर्दृष्टि विकसित होने लगती है। साथ ही, इस बात की ओर भी ध्यान आकर्षित होता है कि एक रचनाकार दूसरे रचनाकार की कृति में क्या तलाश करना चाहता है और इस तलाश में वह किन सर्जनात्मक प्रतिमानों को निरूपित करता है। किसी के लिए वह 'अपूर्वानुमेयता' है तो किसी के लिए ‘घटना के यथार्थ से उसके आशय में उतरना', तो किसी अन्य के लिए संरचनात्मक अन्विति। इसीलिए, इन पत्रों में कभी-कभी एक ही कृति को लेकर इन पत्र-लेखकों में मत-वैभिन्न्य भी साफ़ झलकता है। ये पत्र यह भी बताते हैं कि भरपूर आत्मीयता और पूर्ण सम्मान के साथ अपनी असहमति भी कैसे व्यक्त की जा सकती है। ‘अहो रूपम अहो ध्वनि' के वातावरण में पत्र-लेखकों की स्पष्टोक्तियाँ अलग से ध्यान खींचती हैं। यह पत्र-संग्रह पाठकों और साहित्य-अध्येताओं के लिए इसलिए भी एक अपरिहार्य पाठ हो जाता है कि इससे गोविन्द मिश्र के कृतित्व को समझने-परखने के सूत्रों के साथ सर्जक मन से जुड़े सवालों और प्रतिमानों पर गहरी विचारणा मिलती है, जिससे कृति-विश्लेषण की ऐसी प्रक्रिया उजागर होती है, जो आलोचना को भी वास्तविक अर्थ में रचनात्मक आत्मा दे सकती है। "
ISBN
9789369440771
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