Seediyaa

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सीढ़ियाँ  -
मुगल शासन के अन्तिम चरण में, साम्राज्य के बिखराव के साथ सामाजिक विघटन का वह कालखंड, 'सीढ़ियाँ' नाटक का नायक है, जो समाज के गिरते मूल्यों के साथ अपनी दोशीजगी (कौमार्य) खो बैठता है। पतित समाज, भ्रष्ट अहल्कार, विलासी हुम्परां- ऐसे बदरंग हैं, जिनसे बनी है गुज़रे वक़्त की तस्वीर। समय के साथ न रंग घुले न उड़े।
वर्तमान की तस्वीर में भी प्रेक्षक इस कल की तस्वीर के धुंधले रंगों की झलक देख सकें, बस इतना ही नाटक का उद्देश्य है।
      -(नाटककार की भूमिका से)

An absorbing Stage presentation Subtle characterisation, expert direction and exellent acting by the whole cast made playwright and director Daya Prashad Sinha's 'Seerhiyan... an absorbing stage presentation... The play portrays the moral decadance, political chickenry and the intrigue ridden life of the mighty and powerful... The play in many ways reminds us the present day seenario in our political and social ambience... an unforgettable experience, both a deftly written literary piece as well as performance. 
   -Hindustan Times, Delhi

'Seerhiyan' a memorable experience... It kept the over-packed audience spell-bound for two hours... Written and Directed by D.P. Sinha the play has been conceived at an epic-level set in the period of Mohammed Shah Rangeeley. 'Seerhiyan' is a fascinating juxtaposition of cruelty and comedy. The play gives a beautiful insight into the cruelty and luxuriant living of the elite and exploitation of the weak...
         -The Pioneer, Lucknow

'Seerhiyan: a breath of fresh air
... "Seerhiyan" set against the backdrop of a tottering Mughal empire, gone into deep decline, appealed to the quintessential Indian love of story telling, rich in plot, characterzation and emotive appeal. It's success lay in the fact that while the subject matter belonged to the medieval past, the treatment of the play was contemporary.... 
       -National Mail. Bhopal

ऐतिहासिकता के धरातल से वर्तमान पर इशारा नाटक 'सीढ़ियाँ' कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि नाटक सीढ़ियाँ ने सफलता को चूमा। दर्शकों का अन्त तक अपनी सीट से जमा रहना इसका परिचायक ही गया।
-नवजीवन, लखनऊ

"सीढ़ियाँ" इन्सानी फ़ितरत की नायाब तस्वीर भ्रष्टाचार निवासी हुक्मरी, ऐसे बदरंग, जिनसे बनी है गुज़रे कल की तस्वीर समय के साथ यह रंग न धुले है और न ही उड़े हैं। आज भी इन रंगों की झलक समाज में स्पष्ट दिखाई देती है।   
          -दैनिक जागरण, लखनऊ

सीढ़ियाँ : रंगमंचीय कैनवास पर कालखंड का प्रभावी रेखांकन मुगल शासन के अन्तिम चरण को रेखांकित करता और ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नाटक 'सीढ़ियाँ' वास्तव में लेखक के ऐतिहासिक शोध जटिल मानवीय स्वभाव की गहरी पकड़, अपने समय के अंतर्विरोधों को पकड़ने की गहरी क्षमता और रंग शिल्प की सूक्ष्म अन्तरंग जानकारी का परिणाम है। इतिहास का आधुनिक चेतना के धरातल पर मूल्यांकन करने के साथ-साथ समसामयिक यथार्थ को ऐतिहासिक स्थितियों और पात्रों के माध्यम से प्रस्तुत करने का एक सशक्त प्रयास है।
             -दैनिक भास्कर, भोपाल

"सीढ़ियाँ" बढ़िया टीमवर्क की बुलन्द पेशकश..." भारत भवन के रंगमंडल की नवीनतम प्रस्तुति 'सीढ़ियाँ' अब तक के प्रस्तुत नाटकों से हटकर है। ऐतिहासिक कालखण्ड की जीवन्त और सच्चाई की धरातल पर टिकी और सोच को झकझोरने वाली बुलन्द पेशकश है। मुगलशासन के समय का सही माहौल के बेहतरीन उर्दू की महाबरेदार शैली ने इसे रोचक बना दिया है।
              -देशबन्धु, भोपाल

नाटक विधा का नया आयाम-'सीढ़ियाँ' कापुरुषता, नपुंसकता तक, विलास से विनाश, राग रंग से रक्त धाराओं और महत्त्वाकांक्षाओं की सूली पर लटकते मानव के सबसे पवित्र संवेग आदि भी वही अन्त भी वही एक के बाद, दूसरी सीढ़ी लेकिन यात्रा का पड़ाव वही सवाल वही, समस्या वही, स्वार्थ वही एक वाक्य में यही है दया प्रकाश सिन्हा की सीढ़ियाँ आज के प्रचलित नाटको की भीड़ में एक नया प्रवेश, एक नया अनुभव, एक नयी दिशा, एक नया मोड़, एक नयी ऊँचाईयाँ प्रदान करती है....
            -स्वदेश, भोपाल

'सीढ़ियाँ' नाटक का नायक न मुग़ल बादशाह मोहम्मदशाह रंगीले है, और न ढिंढोरची से सूबेदार बनने वाला सलीम। इसका नायक वह कालखण्ड है, जिसमें वही सत्य है जिसकी विजय हो। सत्य पर असत्य, आस्था पर अनास्था, प्रेम पर वासना और करुणा पर हिंसा की जीत युगधर्म है।

ISBN
9788181437716
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