Siri-Sirival-Chariu
सिरि-सिरिवाल-चरिउ
(श्री श्रीपाल)
अद्यावधि अप्रकाशित कीट-कवलित-जीर्ण-शीर्ण प्रथमानुयोग-कोटि की अपभ्रंश-भाषात्मक-अनुपम-पांडुलिपि का सर्वप्रथम सम्पादन मूल्यांकन-प्रकाशन ।
ग्रन्थ-नायक चम्पापुराधीश-श्रीपाल के माध्यम से प्रस्तुत मध्यकालीन सामाजिक आर्थिक, धार्मिक जीवन का चित्रण, साथ ही समुद्री-द्वीप द्वीपान्तरों के निवासियों की जीवन-पद्धति, समुद्री-यात्रा के कष्ट, समुद्री डाकुओं के आतंक, विदेश व्यापार क्रय-विक्रय की पद्धति, आवागमन के विविध मार्ग, महासार्थवाद धवल-सेठ के प्रशस्त-अप्रशस्त कार्यों की चर्चा आदि से समन्वित रोचक चरित-काव्य में है।
इसमें परिस्थितियाँ सौभाग्य को दुर्भाग्य में कैसे बदल देती हैं तथा पुरुषार्थी नायक उस दुर्भाग्य को अभिशाप न मानकर अपने सहस, पुरुषार्थ एवं चरित्रबल से उसे कैसे वरदान में बदल देता है, इसी तथ्य का सार्थक प्रेरक उदाहरण है प्रस्तुत ग्रन्थ का नायक श्रीपाल ।
प्रारम्भ में तो वह श्रीपाल चम्पापुर-नरेश था किन्तु दुर्भाग्य से उसे कुष्ठ रोग हो गया। इस कारण राज्यपाट का त्याग कर, घर छोड़कर, वह बाहर चला जाता है। इन विषम परिस्थितियों में भी अपने चरित्रबल, धर्मबल एवं मन्त्रशक्ति के चमत्कार के प्रभाव से विभिन्न विषय कष्टों पर भी आश्चर्यजनक विजय प्राप्त कर अपने जीवन को उसने सुखद बना लिया और संवेदनशील भव्यों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया। उसी का एक सार्थक उदाहरण है।
Publication | Bharatiya Jnanpith |
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