Soofi Underworld Ka Ghayab Insaan
सूफ़ी - अंडरवर्ल्ड का ग़ायब इनसान -
प्रिय आबिद,
शायद ज़िन्दगी में तुम्हें मेरा यह पहला पत्र है और वह भी तुम्हारे उपन्यास 'मुसलमान' (सूफी) के लिए बधाई देते हुए। जब से पढ़ा है तब से बेचैन भी हूँ और उत्तेजित भी। लगा कि तुम्हें पत्र लिखना बहुत ज़रूरी है।
विदेशी माफियाओं पर साहित्य और देशी माफियाओं की फ़िल्में मैं अक्सर देखता रहा हूँ। अभी भी 'जुनून' बहुत रेग्यूलेरिटी से देखता हूँ मगर जिस प्रामाणिकता से तुमने इक़बाल का व्यक्तित्व और विकास दिखाया है वह अद्भुत है। सबसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है तुम्हारी शैली जो हर पन्ने को ध्यान से पढ़ने को मजबूर करती है। मैं पढ़ता जाता था और तुम्हारे कथा-कौशल पर मुग्ध होता जाता था। कहूँ, बहुत दिनों बाद इतना रोचक और सार्थक उपन्यास पढ़ा है।
मुस्लिम साइकी की मूलभूत विशेषता को तुमने बिना कहे जिस ख़ूब सूरती से पकड़ा है वह काबिले- दाद है संघर्ष और जद्दोजहद के जिन अँधेरों से निकलकर तुम्हारे दोनों पात्र (नायक प्रतिनायक-खलनायक नहीं) आते हैं वहाँ जिजीविषा, लगन और प्रतिभा ही जीवित रहने की शर्त है। अस्तित्व की यह मूलभूत लड़ाई कला हो या क्राइम दोनों जगह एक्सिलेंस की तलाश बन जाती है। एक्सिलेंस की यह तलाश यहूदियों में भी इतनी ही जबरदस्त है। यही कारण है। कि वहाँ एक से एक बड़े जीनियस हर क्षेत्र में पैदा हुए हैं। यहाँ भी अगर एक तरफ़ हुसैन, उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ, रज़ा हैं तो दूसरी ओर दाऊद इब्राहिम और करीम लाला भी हैं। इन झोपड़पट्टियों ने धार्मिक कठमुल्ले भी पैदा किये हैं। हो सकता है वे तुम्हारे किसी अगले उपन्यास में आयें! आत्मकथा की प्रामाणिकता को बरकरार रखते हुए तुमने अपने ऑल्टर-इगो को जो रूप दिया है और उनकी जिस तरह इंटर-मिक्सिंग की है वह कला विलक्षण है। मेरा मन आख़िर तक यही कहता रहा कि उपन्यास और चले मगर दोनों ही पात्र विवाह के कब्रिस्तान तक आकर ठंडे हो जाते हैं। तुम्हारी और चीज़ें पढ़ने की बेचैनी बढ़ गयी है।
आशा है स्वस्थ और सानन्द हो
सस्नेह
(राजेन्द्र यादव)
9 फ़रवरी , 1996