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Srishti Ka Mukut : Kailash-Mansarover

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Srishti Ka Mukut : Kailash-Mansarover
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हम नहाने उतरे, सात दिनों बाद नहाना हुआ। दिन के नौ बजे थे। पर, तेज़ धूप थी, फिर भी अत्यन्त ठण्डा पानी, पानी नहीं, बल्कि तरल बर्फ़, बर्फ़ का पिघला अत्यन्त पारदर्शी पानी। 11 जून की सुबह में हम काठमाण्डू में नहाये थे। इसके बाद मानसरोवर में ही स्नान हुआ। पर हमेशा बोध बना रहा कि हम मानसरोवर के जल से स्नान कर रहे हैं। सामान्य जल से, तो मैल धुलती है। कामना है कि इस जल से मन के मैल धुलेंगे। विचारों के मैल धुलेंगे। ईर्ष्या, द्वेष, राग और भोग के मैल से मुक्ति मिलेगी। देर तक हम मानसरोवर के किनारे घूमते रहे। साथ-साथ भव्य कैलास निहारते रहे। विद्यापति के शब्दों में कहें, तो-नयन न तिरपित भेल (नैन तृप्ति नहीं हुई)। आँखें अघायी नहीं।

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Srishti Ka Mukut : Kailash-Mansarover
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Vani Prakashan
Author: Harivansh

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