Stree Adhyayan Ek Parichya 

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इस संकलन का उद्देश्य स्त्री मुद्दों पर हुए व्यापक शोध और अध्ययन और कुछ मूल दस्तावेज़ों, लेखों और रिपोर्टों को हिन्दी के पाठकों और छात्रों को उपलब्ध कराना है। यह पुस्तक स्त्री-अध्ययन की समीक्षा नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य यह दिखलाना है कि किस तरह स्त्रीअध्ययन स्त्री मुद्दों का अवलोकन करने के स्त्री-संघर्ष के रूप में विकसित हुआ, कैसे पितृसत्ता की बतौर संस्थान पहचान की गयी और उसका स्वरूप रेखांकित किया गया, कैसे असमानता के एक प्रमुख अक्ष के रूप में जेंडर स्थापित किया गया और किस तरह पारम्परिक समाज विज्ञान की मान्यताओं, प्रविधियों और संकल्पनाओं को प्रश्नांकित करते हुए नये परिप्रेक्ष्य विकसित किये गये। इस संकलन में स्त्री-अध्ययन के विकास पर चल रही बहसों और विवादों के साथ इसके समक्ष विद्यमान चुनौतियों पर विचार करती सामग्री को भी शामिल किया गया है। चार इकाइयों में बँटी इस पुस्तक की पहली इकाई 'स्त्री-अध्ययन क्यों?' पर केन्द्रित है और विभिन्न अनुशासनों में जेंडर परिप्रेक्ष्य की अनुपस्थिति के सवाल उठाती है। दूसरी इकाई में भारत, एशिया और पश्चिम में महिला सवालों को उठाते हुए मूल दस्तावेज़ों, लेखों और बहसों को शामिल किया गया है। इकाई तीन, भारत में महिला आन्दोलन के ज़ोर पकड़ने के साथ स्त्री-अध्ययन का कैसे विकास हुआ, इस पर केन्द्रित है। चौथी इकाई में स्त्री-अध्ययन के संस्थानीकरण और चुनौतियों पर लेखों और बहसों को शामिल किया गया है। यह पुस्तक पिछले दशकों में तेज़ी से विकसित हुए स्त्री-अध्ययन में हिन्दी में सामग्री की कमी को पूरा करने का एक गम्भीर प्रयत्न है।
ISBN
9788194939801
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