Stri Evam Samajik Prasang Mamta Kalia Katha Sahitya
ममता कालिया हिन्दी साहित्य के पिछले पाँच दशकों की आवश्यक रचनाकार हैं, जो हम सबके जीवन के निकट रहती व लिखती आयी हैं। एक्स-रे जैसी पटु सामाजिक दृष्टि और सकारात्मक अनुभवों से भरा उनकी कृतियों का संसार फिर-फिर चर्चा की माँग करता है। उनके लेखन पर उपलब्ध शोध-ग्रन्थों में इस पुस्तक का स्थान, एक परदेसी विद्यार्थी की देन होते हुए भी स्वयं लेखिका के अनुसार "प्रमुख" है। प्रस्तुत किताब को कई स्तरों पर पढ़ा और समझा जा सकता है। मुख्यतः तो यह एक साहित्यिक अध्ययन है, पाठकों को इसके संयोजन में एक विदेशी छात्र की देशी अनुभूतियों के प्रतिबिम्ब भी दिखाई पड़ेंगे। कुछ प्रतिशत समाजशात्र के आस-पास कुछ प्रतिशत भाषा और शैली सम्बन्धी समालोचन के बिन्दुओं का सम्यक् विश्लेषण करने का प्रयत्न यहाँ हुआ है। आलोचना में मूल पाठ की अपरिहार्यता को बारम्बार रेखांकित करती यह खोज ममता कालिया की रचनाओं के सबसे मनोरम एवं मनीषी विचारों का आकलन है। लेखिका के साहित्य तथा अध्येता की जिज्ञासा दोनों के लिए हमारे समय में महिलाओं की स्थिति से जुड़े प्रश्न केन्द्रीय रहे, इसके अलावा मौजूदा शोध में प्रायः सभी दृष्टिगत सामाजिक सन्दर्भों को गूँथने की कोशिश की गयी है। ममता कालिया स्वयं एक स्त्री हैं, जो समाज के बीच में बेचैन खड़ी अपनी आँखों के सामने घट रहे हैरतंगेज़ दृश्यों का चित्रण करती चली हैं। इन्हें उनके सोसियोग्राफी सरीखे लेखन के झरोखे से देखेंगे और इस मौलिक व्याख्या के सहारे सहज रूप से समझने का प्रयास करेंगे।