Suman-Samargra-1

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"सुमन-समग्र-1 : अदम्य साहस, ओज और तेजस्विता एक ओर, दूसरी ओर प्रेम, करुणा और रागमयता, तीसरी ओर प्रकृति का निर्मल दृश्यावलोकन, चौथी ओर दलित वर्ग की विकृति और व्यंग्यधर्मी स्वर यानि प्रगतिशील लता की प्रवृत्ति - शिवमंगल सिंह 'सुमन' की कविताओं की यही मुख्य विशेषताएँ हैं। सुमन जी को छायावाद के बाद प्रारम्भ हुए प्रगतिवाद का एक प्रमुख कवि माना जाता है। सुमन जी प्रगतिवादी हैं यह सच है, परन्तु यह भी सच है कि वे प्रगतिवादी से अधिक स्वच्छन्दतावादी हैं-निराला, प्रसाद, पन्त की तरह। इसीलिए वे किसी वाद के घेरे में बन्द होकर रचनाशील नहीं हो सके। सुमन जी मूलतः रोमेंटिक मिज़ाज के कवि हैं और उनका रोमेंटिसिज़्म ही उन्हें निराला की तरह स्वच्छन्दतावादी बनाये रखता है-जो एक तरफ़ समाज की रीतियों, रूढ़ियों, अन्ध-परम्पराओं से विद्रोह करता है, दलितों के प्रति आह्लादित भी होता है। उसकी भावधारा में उतार-चढ़ाव ही नहीं बदलाव भी आता रहता है। इसलिए सुमन की कविता में कभी नवीन, माखनलाल, सुभद्रा कुमारी चौहान और रामधारीसिंह दिनकर की तरह राष्ट्रीयता, ओज और विद्रोही भाव छलछलाता रहता है तो कभी प्रसाद और पन्त की तरह प्रकृति, प्रेम और सौन्दर्य का प्रगाढ़ चित्रण भी दिखलाई देता है तो कभी निराला की तरह दलित वर्ग का यथार्थवादी रेखांकन। सुमन जी छायावादोत्तर कविता के एक महत्त्वपूर्ण कवि हैं-ऐतिहासिक महत्त्व प्राप्त। उनकी ऐतिहासिकता इस बात में सिर्फ नहीं है कि उन्होंने विविध रंगी विविध आयामी कविताएँ लिखी हैं या लोकप्रिय कविता के गीतात्मक स्वरूप के वे प्रखर गायक कवि हैं, बल्कि इस बात में भी है कि वे अपने समय या युग के कवि हैं-युगधर्मा कवि। ऐसा कवि कहीं बँधता नहीं, जड़ नहीं होता बल्कि मुक्त होता है और मुक्त होकर भी तमाम चीज़ों से अपना गहरा तादात्म्य स्थापित करता है। सुमन 1934 से आज तक अप्रतिहत रूप में कविता-कर्म से जुड़े हैं-कविता उनके पूरे व्यक्तित्व से छलकती है-विविध रंगी एवं विविध धर्मी कविता । ऐसे कवि की समग्र कविताओं के प्रकाशन की ज़रूरत लम्बे समय से अनुभव की जा रही थी। जिसकी पूर्ति आज हो रही है। सुमन जी का पहला कविता-संग्रह 1939 में 'हिल्लोल' नाम से छपा था, जब से अब तक कई संग्रह छप चुके हैं, जिनमें आज कई अनुपलब्ध हैं। वे एक साथ, एक जगह सुमन-समग्र में पहली बार प्रकाशित हो रहे हैं। सुमन जी की कविताओं का सही-सही मूल्यांकन हो, इसके लिए भी ज़रूरी था उनकी तमाम कविताओं का एक जगह एक साथ प्रकाशित होना। सुमन जी ने एक युग को जिया है, और उसमें जो कुछ भी महत्त्वपूर्ण है, अपनी कविताओं में दर्ज किया है, सुमन-समग्र में इसीलिए युग की धड़कन को साफ़-साफ़ सुना जा सकता है। -भारत यायावर "
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9789362879790
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