Sumanglam Se Shraddhanjali Tak
सुमंगलम् से श्रद्धांजलि तक -
सुमंगलम् से श्रद्धांजलि तक एक परिवार की इतिहास-गाथा नहीं बल्कि परिवार के बहाने ऐसा सामाजिक आख्यान रचने का प्रयास लेखक ने किया है जिसके द्वारा हम व्यक्ति के माध्यम से उसके समय और समाज को समझ सकते हैं।
इसके लिए लेखक डॉ. सूर्यपाल शुक्ल ने इस विवरणात्मक रचना में ब्यौरों का रचनात्मक इस्तेमाल किया है। इनमें कहीं भी नीरसता या बोझिलता नहीं है बल्कि प्राचीन आख्यानों सरीखा कथारस है जो आद्यन्त बाँधकर रखता है। तथ्यों की विवरण शैली में यह प्रस्तुति लेखक के जीवन के विशेष काल खंड का चित्रण मात्र नहीं है बल्कि पूर्वोत्तर के सम्मोहित करते सौन्दर्य से हार्दिक परिचय करानेवाली रचना सम्भव करती है। इस रास्ते लेखक ने जहाँ परिवेश का जीवन्त वर्णन किया है वहीं पात्रों के चरित्रों की सूक्ष्मतम रेखाएँ उभारकर उन्हें ऐसे आकार किया है कि उन्हें हम साक्षात् पाते हैं। लेखक ने उनके संवादों को ऐसे नियोजित किया है कि उनके चरित्र के साथ-साथ वर्णित घटनाएँ भी स्पष्ट होती जाती हैं।
शिल्प के धरातल पर भी इस कृति में नयापन मिलता है। लेखक का प्रयोगशील रुझान नयी भाषा-शैली को रचने की ओर भी दिखाई देता है। इसलिए इसकी प्रौढ़ता देखकर सहसा यह विश्वास नहीं होता कि यह लेखक की प्रथम औपन्यासिक कोशिश है।
भारतीय संस्कृति के उदात्त मानव-मूल्य और उदार जीवन-दृष्टि में रचे-बसे मानवीय सम्बन्धों की झलक देनेवाली इस कथा रचना में लेखक के समाजशास्त्रीय शोध-अध्ययन और तैयारी का भी पता चलता है।