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स्वर्णरेख -
'स्वर्णरेख' हिन्दी काव्य-जगत् को एक ऐसे कवि की भेंट है, जिसने किसी अदृश्य प्रेरणा से परिचालित होकर उस अगम-दुर्गम घाटी में प्रवेश कर लिया जहाँ मनीषी, साधक और वाग्मी भी डरते-डरते पग रखते हैं। अन्तःप्रेरणा ने कवि 'मयूख' को विवश कर दिया कि ऋग्वेद की ऋचाओं के मनन ने जिस अलौकिक काव्यानन्द की मन में सृष्टि की उसे वह अभिव्यक्ति दें। सो, बिना किसी आधिकारिक गर्व के, बिना किसी दावे के, यह कृति पाठकों को समर्पित है। सच बात तो यह है कि वेद-मन्त्रों के इस भावानुवाद में ऐसी समरसता और ऐसा प्रवाह है कि आश्चर्यचकित रह जाना पड़ता है।
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Publication | Bharatiya Jnanpith |
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