Talab Mein Tairtee Lakadee
तालाब में तैरती लकड़ी -
प्रदीप बिहारी की कहानियाँ मिथिला के निम्न मध्यवर्गीय जीवन का जीवन्त दस्तावेज़ हैं। एक बार इन कहानियों की दुनिया में प्रवेश करने के बाद आप आसानी से बाहर नहीं निकल सकते। सहजता का सूत्र ग्रहण कर लेखक विविधता का सूत्र गढ़ता हुआ यहाँ दिखता है। इन कहानियों की दुनिया में कुछ भी दिव्य या भव्य जैसा नहीं है। मामूली जन और जीवन की मामूली चीज़ों से ये कहानियाँ हमें जोड़ती हैं। हमारी संवेदना को झकझोरती हैं। हमारे भीतर ख़ास तरह की तिलमिलाहट पैदा करती हैं। गहरी पीड़ा और टीस के धरातल पर इनकी रचना हुई है, जहाँ लेखक का दृष्टिकोण करुणा सम्पन्न मानवीयता से ओत-प्रोत है। मगर अवसाद और त्रासद स्थितियों से निकाल कर जीवन को हर साँस तक जीने की जद्दोजहद इन कहानियों की प्रेरणा है। यथार्थ के प्रति लेखक का नज़रिया एकदम साफ़ है। कथाकार पाठकों की अँगुली पकड़कर उसे सत्य की तरफ़ खींचकर ले जाना चाहता है।
मामूली लोगों के जीवन के बीच मनुष्य विरोधी व्यवस्था है, जो मुँह फाड़कर उसे कच्चा चबाना चाहती है। उस मनुष्यता को बचाने की कथाकार की निर्भीक कोशिश इन कहानियों में दर्ज होती है। ये कहानियाँ आकार में छोटी है, पर हमारे अन्तःकरण के आयतन का विस्तार करती है। यहाँ आप कोरी भावुकता में नहीं फँसते अपितु यथार्थ के त्रासद दृश्यों को देखकर आपकी भावना छलनी हो सकती है। आपके भीतर थोड़ी और मनुष्यता जाग्रत होती है। स्मृति की सम्पन्नता इस काथाकार को मानवीय मर्म से भरती है। आंचलिक सुगन्ध से भरपूर करती है। वह हमें उस अंचल में ले जाती है, जहाँ निम्न से निम्नतर गिनती से बाहर, भव्यता के विरुद्ध आजीवन की गहरी पड़ताल है। यहाँ उस वर्ग का श्रम गन्ध और स्वेद-बूँद लेखक की क़लम की स्याही में प्रवेश कर जाता है। वह क़लम मानुस की दुर्धर्ष जिजीविषा को अपराजित और अक्षुण्ण रखने में सक्षम है।—अरुणाभ सौरभ