Til Bhar Jagah Nahin
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"अवधनारायण मुद्गल
अपनी कविताओं और कथा दृष्टि में मिथकीय प्रयोगों के लिए विशेष रूप से जाने जाने वाले कवि, कथाकार, पत्रकार, सिद्धहस्त यात्रावृत्त लेखक, लघुकथाकार, संस्मरणकार, अनुवादक, साक्षात्कारकर्ता, रिपोर्ताज़ लेखक और संस्कृत साहित्य के मर्मज्ञ, चिन्तक विचारक अवधनारायण मुद्गल, लगभग 27 वर्षों तक टाइम्स ऑफ़ इंडिया की ‘सारिका' जैसी कथा पत्रिका से निरन्तर जुड़े ही नहीं रहे, बल्कि 10 वर्षों तक स्वतन्त्र रूप से उसके सम्पादन का प्रभार भी सँभाला और कथा जगत में मील का पत्थर कई विशेषांक संयोजित कर उसे नयी ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
28 फ़रवरी, 1936 को आगरा जनपद के ऐमनपुरा गाँव में एक मामूली से जोत के मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में जन्मे मुद्गल जी के पिताजी पण्डित गणेश प्रसाद मुद्गल जानेमाने शिक्षाविद् थे और माँ पार्वती देवी सहज गृहिणी। अपने चार भाई-बहनों में वे सबसे छोटे थे और खेतीबारी के बजाय उच्च शिक्षा के आकांक्षी। मँझले भाई की आकस्मिक मृत्यु ने उन्हें बहुत तोड़ा।
उन्होंने साहित्य रत्न और मानव समाजशास्त्र में लखनऊ विश्वविद्यालय से एम. ए. किया और संस्कृत में शास्त्री। शिक्षा के दौरान संघर्ष के दिनों में उन्होंने यशपाल जी के साथ काम किया और अमृतलाल नागर, लखनऊ में उनके स्थानीय अभिभावक ही नहीं थे बल्कि उनका पूरा परिवार उन्हें अपने परिवार का सदस्य मानता था। जनयुग, स्वतन्त्र भारत, हिन्दी समिति में कार्य करते हुए 1964 में वे टाइम्स ऑफ़ इंडिया (मुम्बई) से जुड़े। आगे चलकर मुद्गल जी को सारिका के साथ-साथ वामा और पराग के सम्पादन का भार भी कुछ अरसे के लिए सौंपा गया। इस बीच लिखना उनका निरन्तर जारी रहा लेकिन उन्होंने अपनी सर्जना को प्रकाशित करने में कोई विशेष दिलचस्पी नहीं दिखायी। उनकी रचनाएँ हैं कबन्ध, मेरी कथा यात्रा (कहानी संकलन), अवधनारायण मुद्गल समग्र (2 खण्ड), मुम्बई की डायरी (डायरी), एक फलांग का सफ़रनामा (यात्रावृत्त), इब्तदा फिर उसी कहानी की (साक्षात्कार), मेरी प्रिय सम्पादित कहानियाँ (सम्पादन), तथा खेल कथाएँ (सम्पादन)।
उन्हें उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के 'साहित्य भूषण', हिन्दी अकादेमी दिल्ली के ‘साहित्यकार सम्मान', एवं राजभाषा विभाग बिहार के सम्मान से भी सम्मानित किया गया।"
ISBN
9789389563764