Tulnatmak Sahitya Bharatiya Pariprekshya
बर्लिन की दीवार के पतन के तीन साल बाद सन् 1992 से तुलनात्मक साहित्य अपने नवीकरण की भूमिका बनाने में जुट गया था । उन दिनों वैश्विकता (Universality) का जामा ओढ़े तुलनात्मक साहित्य अपनी अन्तिम साँसें ले रहा था, परन्तु फिर भी साँसों की एक आवाज़ थी और वह मौत की शान्ति से बेहतर थी । वैश्विकता के स्थान पर बहुलवादी सन्दर्भ के आधार पर नवीकरण का काम शुरू हुआ। सांस्कृतिक विशिष्टताओं और मानविकी आलोचनात्मक गहराई (Critical Edge of the Humanities) की सहायता से भूमंडलीकरण की विनियोजन योजना का विरोध किया जाने लगा तथा तुलनात्मक साहित्य क्षेत्र में वैश्विकता के स्थान पर समूहवाद (Collectiveness) को महत्त्व देकर नये तुलनात्मक साहित्य का प्रसार शुरू हुआ। इस पुस्तक में चौबीस अध्यायों की सहायता से नये तुलनात्मक साहित्य की रचना का एक मानचित्र अंकित किया गया है जो भारत जैसे तुलनात्मक क्षेत्र वाले देश के लिए उपादेय और आवश्यक हो सकता है।