Uljhan
उलझन -
रोज़-ब-रोज़ बदल रहे समय और समाज में जो चीज़ आज भी नहीं बदली है वह है स्त्रियों की पराधीनता। सदियों से स्त्रियाँ पुरुष प्रधान व्यवस्था में भेदभाव और शोषण की शिकार हैं। आज पूरी दुनिया में इस महत्वपूर्ण समस्या पर लोगों की निगाहें गयी हैं और ख़ुद स्त्रियों ने भी अपने शोषण-उपेक्षा के विरुद्ध आवाज़ बुलन्द की है। फिर भी अभी इस दिशा में बहुत कुछ होना शेष है। आज भी अपने देश में स्त्रियों को पुरुषों के समान और स्वतन्त्र हैसियत मिलना शेष है। लेकिन आये दिन दहेज-हत्याओं, बलात्कारों, कन्या भ्रूण-हत्याओं और न जाने कितनी तरह की मार झेलने को विवश स्त्री आज सिर्फ़ इन दुखों को भुगत नहीं रही है, बल्कि वह इनका अपने अनुभव और शक्ति सामर्थ्य से विरोध भी कर रही है। जाहिर है वह भविष्य के रास्ते पर है अग्रसर है।
जानी-मानी लेखिका शकुंतला ब्रजमोहन की कहानियों का यह संग्रह स्त्रियों के शोषण का मार्मिक ब्यौरा ही नहीं, उनके संघर्ष का बयान भी है।
अन्तिम पृष्ठ आवरण
एक दिन हिम्मत करके उसने नीरज से कहा "नीरज! मैं अपने अतीत के बारे में तुमको सब कुछ बताना चाहती हूँ। मैं तुमकों धोखे में नहीं रखना चाहती।"
नीरज बोला "अरे यार! गोली मारो अतीत को। मुझे तुम्हारे अतीत से कुछ लेना-देना नहीं है। मैंने तुम्हारा वर्तमान देखा है। वह इतना प्यारा है जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
वीणा ने फिर ज़ोर देकर कहा "नीरज! तुम मेरे अतीत के बारे में कुछ नहीं जानते।" यह कहते-कहते उसकी आँखें छलछला पड़ीं।
नीरज ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा "यह अतीत की रट क्यों लगा रही हो। जब मैं सुनना नहीं चाहता तो क्यों ज़िद कर रही हो।" –इसी पुस्तक से
Publication | Vani Prakashan |
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