Urdu Sahitya Ki Parampara

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"जानकीप्रसाद शर्मा हिन्दी के साथ-साथ गाहे-बगाहे उर्दू में भी लिखते रहे हैं और परस्पर दोनों भाषाओं के अनुवादक के रूप में जाने जाते हैं। यहाँ उनके उर्दू भाषा और साहित्य विषयक लेखों को एक जगह पढ़ा जा सकता है। ये लेख समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर चर्चित होते रहे हैं। किताब में वली दकनी के बहाने दकनी हिन्दी व उर्दू के साहित्य की चर्चा की गयी है। फिर उत्तर भारत में उर्दू साहित्य के विकास-सोपानों को रेखांकित करने वाले कई लेख हैं। वाजिद अली शाह की कृति 'परीख़ाना' के माध्यम से उर्दू गद्य की आरम्भिक स्थिति का जायज़ा लिया गया है। दीवान-ए-गालिब की तारीख़ी तरतीब के सवाल को हिन्दी में पहली बार चर्चा के बीच लाया गया है। कुछ लेख प्रगतिशील कथासाहित्य पर केन्द्रित हैं। इसमें उर्दू-हिन्दी विवाद पर भी सामग्री है जो इस विषय की बाबत लेखक के अभिमत का पता देती है। इसके अलावा अन्य लेख भी पठनीय और विचारोत्तेजक हैं। पिछले वर्षों में उर्दू किताबों के देवनागरी संस्करण बड़ी तेज़ी के साथ सामने आये हैं। कई हिन्दी पत्रिकाओं ने उर्दू साहित्य की किसी विधा पर एकाग्र अंक भी निकाले हैं। लेकिन हिन्दी लेखकों द्वारा लिखी गयीं ऐसी किताबें कमयाब हैं जो समग्रतः उर्दू साहित्य के विमर्श के लिए समर्पित हों। उर्दू साहित्य की परम्परा किताब इस ज़रूरत को एक हद तक पूरा कर सकेगी। लेखक ने उर्दू साहित्य की परम्परा को वस्तुनिष्ठ परिप्रेक्ष्य में रखकर देखा है। उनके पास रचनाओं के विश्लेषण की सलाहियत है। उर्दू साहित्य की परम्परा से गहरा जुड़ाव रखने वाले पाठकों को इसमें कुछ नये सन्दर्भ मिलेंगे और जिन पाठकों की उर्दू साहित्य में आम दिलचस्पी है, उन्हें इसकी परम्परा से परिचय प्राप्त करने में मदद मिलेगी। अतएव यह किताब हर स्तर के उर्दू-प्रेमी हिन्दी पाठकों के लिए उपयोगी साबित होगी। "
ISBN
9789350001233
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