Uttar Adhunik Media Vimarsh

In stock
Only %1 left
SKU
9788181434500
Rating:
0%
As low as ₹375.25 Regular Price ₹395.00
Save 5%

उत्तर आधुनिक मीडिया विमर्श - 
आज का मीडिया जगत उत्तर-आधुनिक समय का 'बाई प्रोडक्ट' है, उसके वातावरण में रहता बनता है। उपभोग और अस्मिता के निर्माण के प्रकार्य जहाँ भी हैं, , वे तमाम उत्तर-आधुनिक सांस्कृतिक प्रस्थानों का संकेत हैं। प्रिंट मीडिया, रेडियो, फ़िल्में अभी तक बहुत दूर तक आधुनिक किस्म के 'एक पूर्ण सत्य' (राष्ट्र या परिवार) के निर्माण में लगे नज़र आते हैं, मगर उन्हीं के भीतर बहुत कुछ ऐसा होता है जो उपभोग, अस्मिता, विकेद्रण और चयन की आजादी की बात करता है। आज का मीडिया ख़ासकर अपने यहाँ का मीडिया आधुनिक और उत्तर आधुनिक के इस तनाव में फँसा है और अपने-अपने ढंग से इसका हल करता है। छब्बीस फीसदी एफडीआई के निवेश-युग के बाद मीडिया वह नहीं रहने वाला जो कि अब तक है। वह ग्लोबल वातावरण का अनिवार्य हिस्सा होगा, वह ‘लेट कैपिटलिज्म के सांस्कृतिक तर्क' (फ्रेडरिक जेमेसन) को बढ़ा येगा।
पोस्टमॉडर्न और मीडिया के अन्तःसम्बन्धों पर 'पोस्ट मॉडर्निज्म एंड टेलीविज़न' में मार्क ओ'डे ने टेलीविज़न को 'विवादास्पद' उत्तर-आधुनिक माध्यम कहा है। वे कहते हैं : टेलीविज़न विवादास्पद रूप से, सर्वोत्कृष्ट 'उत्तर-आधुनिक माध्यम' है।

नकल, स्वांग, प्रपंच, छलना (साइमूलेशंस), अति चंचला - यथार्थ (हाइपर रीयलिटी), खंड-खंडता (फ्रेगमेंटेशन), विजातीयता, बहुविधिता, विकेंद्रण, अन्तर्पाठीयता (इंटर टेक्स्चुअलिटी), अति पाठीयता, उप-पाठ (सब-टेक्स्ट), अति-पाठ (हाइपर-टेक्स्ट), शब्द क्रीड़ा, पैरोडी, पेश्टीच आदि अनेक उत्तर-आधुनिक विमर्शात्मक पद, टीवी के 'पाठ' में लगभग 'रेडीमेड' तरह से काम में आते हैं। —इसी पुस्तक से
अन्तिम पृष्ठ आवरण
मीडिया वालों को कुछ देर टाइम निकालकर सोचना विचारना चाहिए कि हाइप और यथार्थ में किस तरह भेद करें। पूरे मुल्क की तकदीर का फैसला जब तीन घंटे में हो रहा हो तो राजनीतिक टिप्पणी भी तीन सेकेंड की होंगी। सब कुछ लाइव होकर भी यदि डैड हो रहा हो तो लाइव प्रसारण की नीति पर भी विचार किया जाना चाहिए। चमचागिरी करना, फिर ज़ख़्म  कुरेदना मीडियाकर्मियों का काम नहीं।
एक ज़माना था जब मीडिया का नारा था 'आज़ादी' । गुलामी से आज़ादी। अब भी यही नारा है लेकिन सन्दर्भ बदल गया है। अब इसका मतलब है : संकीर्णता और रूढ़िवाद से आज़ादी! और यह आज़ादी  मीडिया की उस मध्यवर्ती भूमिका के बिना सम्भव नहीं जिस मुक्त बाज़ार, उपभोक्तावाद और ग्लोबल तकनीक सम्भव करते हैं।

इसलिए मीडिया पाठ्यक्रमों में 'आपदा प्रबन्धन पाठ्यक्रमों' का हिस्सा होना चाहिए। जो आपदा की सूचना के निर्माण, भाषा में, चित्रों में उसके निर्माण को प्रबन्धन के साथ तालमेल में करे। यथार्थ चित्रण को नहीं छोड़े लेकिन अपने संचार के परिणामों से अति सावधान होकर चले। इसके लिए मीडिया गृहों को अलग 'ओरिएंटेशन कार्यक्रम' चलाने चाहिए।
—इसी पुस्तक से

 

ISBN
9788181434500
sfasdfsdfadsdsf
Write Your Own Review
You're reviewing:Uttar Adhunik Media Vimarsh
Your Rating
Copyright © 2025 Vani Prakashan Books. All Rights Reserved.

Design & Developed by: https://octagontechs.com/