Publisher:
Vani Prakashan

Uttaradhikarini

In stock
Only %1 left
SKU
Uttaradhikarini
Rating:
0%
As low as ₹90.25 Regular Price ₹95.00
Save 5%

उत्तराधिकारिणी - 
अपने लेखन में निरन्तर प्रयोगधर्मी रहे मनोहर श्याम जोशी ने पुनर्रचना के रूप में एक नयी विधा का हिन्दी में सूत्रपात किया था। उस अर्थ में 'उत्तराधिकारिणी' का अपना ख़ास महत्त्व है। जो बात इसमें विशेष रूप से ध्यान रखने वाली है वह यह है कि बावजूद इसके कि इसे पुनर्रचना कहा गया है यह पूर्ण रूप से मौलिक उपन्यास है। 'वाशिंगटन स्क्वायर' की पुनर्रचना कहकर जोशी जी ने 19वीं शताब्दी के महान लेखक हेनरी जेम्स के प्रति अपनी श्रद्धा निवेदित की है।
जोशी जी का यह उपन्यास उनके समस्त लेखन में एक भिन्न स्थान रखता है। इसमें उनकी वह शैली नहीं है जिसकी वजह से उनको हिन्दी में उत्तर-आधुनिक उपन्यास के जनक के रूप में देखा गया- अनेकान्तता या क़िस्सों के भीतर से निकलते हुए क़िस्से, भाषा का जबरदस्त खेल। लेकिन एक बात है इस उपन्यास में रोचकता भरपूर है। भाषा का वह बाँकपन भी है जो बाद में उनकी सिग्नेचर शैली मानी गयी।

अन्तिम पृष्ठ आवरण - 
"डॉक्टर राज ने अपनी बेटी की 'मूर्ख भावुकता' को बीमारी का दर्जा दिया और बाक़ायदा जाँच-पड़ताल शुरू की। मनमथ नाम के जिस 'कीटाणु' के कारण यह बीमारी फैली थी उसके बाबत पूरी जानकारी हासिल करना ज़रूरी था। लेकिन पूछताछ करने पर महज़ इतना पता चल सका कि मनमथ बाबू के बारे में किसी को कुछ पता नहीं है। या यो कहिए कि वही पता है जो मनमथ बाबू ने ख़ुद बताया है। अलग-अलग लोगों से हीरो मनमथ के जीवन के नाटकीय उतार-चढ़ाव, काव्यात्मक धूप-छाँव के अलग-अलग क़िस्से सुनने को मिले और डॉक्टर साहेब इसी नतीजे पर पहुँचे कि 'एक लफंगे ने अपने हुस्न का सहारा लेकर मेरी अबोध बिटिया का मजाक उड़ाया है।' कसमियाँ तौर पर यही कहा जा सकता है कि मनमथ बाबू ने कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने बाप की जमापूँजी किसी 'बिजनेस' में गँवा दी और फिर घर से भाग खड़े हुए। कोई बारह वर्ष बाद लौटे हैं और अपनी ग़रीब विधवा बहन के घर में जमे हुए हैं। उन्हें किसी अच्छी 'बिजनेस' की तलाश है, मगर फिलहाल शायद डॉक्टर राज की अपार सम्पदा की उत्तराधिकारिणी कामिनी के प्रेमी और पति बन जाने की योजना में ही 'बिजी हैं"।

 

 

 

ISBN
Uttaradhikarini
Publisher:
Vani Prakashan
More Information
Publication Vani Prakashan
मनोहर श्याम जोशी (Manohar Shyam Joshi )

मनोहर श्याम जोशी 

जन्म : 9 अगस्त, 1933 को अजमेर में।

लखनऊ विश्वविद्यालय के विज्ञान स्नातक मनोहर श्याम जोशी ‘कल के वैज्ञानिक’ की उपाधि पाने के बावज़ूद रोज़ी-रोटी की ख़ातिर छात्र-जीवन से ही लेखक और पत्रकार बन गए। अमृतलाल नागर और अज्ञेय—इन दो आचार्यों का आशीर्वाद उन्हें प्राप्त हुआ। स्कूल मास्टरी, क्लर्की और बेरोज़गारी के अनुभव बटोरने के बाद 21 वर्ष की उम्र से वह पूरी तरह मसिजीवी बन गए।

प्रेस, रेडियो, टी.वी. वृत्तचित्र, फ़िल्म, विज्ञापन-सम्प्रेषण का ऐसा कोई माध्यम नहीं जिसके लिए उन्होंने सफलतापूर्वक लेखन-कार्य न किया हो। खेल-कूद से लेकर दर्शनशास्त्र तक ऐसा कोई विषय नहीं जिस पर उन्होंने क़लम न उठाई हो। आलसीपन और आत्मसंशय उन्हें रचनाएँ पूरी कर डालने और छपवाने से हमेशा रोकता रहा है। पहली कहानी तब छपी जब वह अठारह वर्ष के थे लेकिन पहली बड़ी साहित्यिक कृति तब प्रकाशित करवाई जब सैंतालीस वर्ष के होने को आए।

केन्द्रीय सूचना सेवा और टाइम्स ऑफ़ इंडिया समूह से होते हुए सन् ’67 में हिन्दुस्तान टाइम्स प्रकाशन में ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान के सम्पादक’ बने और वहीं एक अंग्रेज़ी साप्ताहिक का भी सम्पादन किया। टेलीविज़न धारावाहिक ‘हम लोग’ लिखने के लिए सन् ’84 में सम्पादक की कुर्सी छोड़ दी और तब से आजीवन स्वतंत्र लेखन करते रहे।

प्रकाशित प्रमुख कृतियाँ : ‘कुरु-कुरु स्वाहा’, ‘कसप’, ‘हरिया हरक्यूलीज की हैरानी’, ‘हमज़ाद’, ‘क्याप’, ‘ट-टा प्रोफ़ेसर’ (उपन्यास); ‘नेताजी कहिन’ (व्यंग्य); ‘बातों-बातों में’ (साक्षात्कार); ‘एक दुर्लभ व्यक्तित्व’, ‘कैसे क़िस्सागो’, ‘मन्दिर घाट की पैड़ियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘आज का समाज’ (निबन्ध); ‘पटकथा-लेखन : एक परिचय’ (सिनेमा)। टेलीविज़न धारावाहिक : ‘हम लोग’, ‘बुनियाद’, ‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने’, ‘कक्काजी कहिन’, ‘हमराही’, ‘ज़मीन-आसमान’। फ़िल्म : ‘भ्रष्टाचार’, ‘अप्पू राजा’ और ‘निर्माणाधीन ज़मीन’।

सम्मान : उपन्यास ‘क्याप’ के लिए वर्ष 2005 के ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ सहित ‘शलाका सम्मान’ (1986-87); ‘शिखर सम्मान’ (अट्टहास, 1990); ‘चकल्लस पुरस्कार’ (1992); ‘व्यंग्यश्री सम्मान’ (2000) आदि।

निधन : 30 मार्च, 2006

Write Your Own Review
You're reviewing:Uttaradhikarini
Your Rating
Copyright © 2025 Vani Prakashan Books. All Rights Reserved.

Design & Developed by: https://octagontechs.com/