Vaishvik Gaon-Pravasi Paon : Ek Maya?

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"पचास वर्ष के आसपास की उम्र के लेखक हिन्दी में 'युवा लेखक' समझे जाते हैं। प्रवासी हिन्दी एवं विदेशी हिन्दी लेखकों की रचनाओं का यह जहाँ तक हमको मालूम है पहला संकलन है जिसमें कहानियाँ और कथेतर दोनों को समाहित किया गया है। हिन्दी घर की बोली है, भारत की औपचारिक भाषा और अब विश्वभाषा भी बनने की उम्मीद है। महत्त्वपूर्ण है कि नयी पीढ़ी समझती है कि हिन्दी हमारी है और न सिर्फ़ विरासत की भाषा है। तब ही ये नयी आवाज़ें हिन्दी की मशाल को जलाये रखेंगी। हिन्दी साहित्य विश्व-साहित्य पर एक महत्त्वपूर्ण योगदान है ख़ासकर जब से प्रवासी अनुभव और नयी पीढ़ी के अनुभवों की गूँज इसमें उभरकर आ रही है। हाँ, हिन्दी के साथ हीनता की भावना का मसला है पर वह तब तक चलता रहेगा जब तक हिन्दी विरासत और आधुनिकता दोनों का माध्यम बनती रहेगी। प्रवासी युवा दो संस्कृतियों, दो परम्पराओं और दो से अधिक भाषाओं के बीच अपनी पहचान को परिभाषित करने का प्रयास कर रहे हैं। यह संग्रह उनके संघर्षों, उपलब्धियों और भावनाओं का एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है; यह उनके मानसिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संघर्षों का दस्तावेज़ है। इसके अलावा इस जिल्द में सम्मिलित रचनाएँ प्रवासी समाज की पहचान की ज़रूरतों से आगे बढ़कर ग़ैर-प्रवासी हिन्दी का परिप्रेक्ष्य भी दिखाती हैं। समकालीन वैश्विक हिन्दी आजकल न सिर्फ प्रवासी समाज की है बल्कि सारे हिन्दी-प्रेमियों की है जिसमें ग़ैर-प्रवासी लेखन भी आ जाता है। इस संग्रह की विशेषता यह भी है कि इसके लेखक विश्व के अलग-अलग देशों और परिवेशों से ही नहीं, अपितु अलग-अलग पेशों से भी आते हैं; उनके समृद्ध और विविध अनुभव इस कृति को अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी साहित्य के लिए महत्त्वपूर्ण बनाते हैं। यही कारण है कि वैश्विक हिन्दी के लेखन के साथ सच्चे मायने में हिन्दी साहित्य का वैश्वीकरण हो रहा है। "
ISBN
9789369448425
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