Varahmihir
वर:मिहिर -
आचार्य वर:मिहिर ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी के महान वैज्ञानिक एवं गणितज्ञ रहे हैं। कापित्थक (उज्जैन) में उनके द्वारा विकसित गणितीय विज्ञान का गुरुकुल सात सौ वर्षों तक अद्वितीय रहा। वर:मिहिर बचपन से ही अत्यन्त मेधावी और तेजस्वी थे। अपने पिता आदित्यदास से परम्परागत गणित एवं ज्योतिष सीखकर इन क्षेत्रों में व्यापक शोध कार्य किया। उनके कार्यों की एक झलक समय मापक घट यन्त्र, इन्द्रप्रस्थ में लौहस्तम्भ के निर्माण और ईरान के शहंशाह नौशेरवाँ के आमन्त्रण पर जुन्दी-शापुर नामक स्थान पर वेधशाला की स्थापना के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उपन्यास को बोझिल न बनाने के उद्देश्य से गणितीय गणनाओं का समावेश नहीं है, परन्तु यत्र-तत्र उनकी गणितीय उपलब्धियों की ओर इंगित किया गया है। वर:मिहिर का मुख्य उद्देश्य गणित एवं विज्ञान को जनहित से जोड़ना था। वस्तुतः ऋग्वेद काल से ही भारत की यह परम्परा रही है। वर:मिहिर ने पूर्णतः इसका परिपालन किया है। ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी के महान भारतीय गणितज्ञ एवं वैज्ञानिक वर:मिहिर के गौरवशाली व्यक्तित्व-कृतित्व को औपन्यासिक शिल्प में प्रस्तुत करती एक महत्त्वपूर्ण कृति। भारत के प्रसिद्ध विवेक-सम्पुष्ट और स्वाभिमान-सम्मत अतीत का एक ऐसा आख्यान जो तार्किकता और हार्दिकता का अत्यन्त पठनीय संगम है।