Vasna Ek Nadi Ka Naam Hai
सविता सिंह का पहला कविता-संग्रह अपने जैसा जीवन सदी की शुरुआत में आया था। इस सदी का अब चौथा हिस्सा पूरा होने को है और सविता सिंह का नया कविता-संग्रह वासना एक नदी का नाम है शीर्षक से प्रकाशित हो रहा है। ये पच्चीस वर्ष भारतीय समाज और हिन्दी कविता में परिवर्तन के रहे हैं। यह यात्रा सविता सिंह के कविता-संग्रहों के शीर्षकों को ही देखा जाये तो यह जीवन, नींद, रात, स्वप्न, शोक से होती हुई वासना तक पहुँची है। यह चेतना की यात्रा है जिस पर बहुत दबाव है और हिन्दी कविता की भी।
सविता सिंह वासना का अर्थ विस्तार करती हैं। यहाँ वासना सृष्टि का पर्याय है जिसके लिए ज़िम्मेदारी भरा लगाव ज़रूरी है। एक ऐसे समय में जब आधारभूत अवधारणाएँ विकृत और विस्मित की जा चुकी हैं, सृष्टि को बचाने के लिए स्त्री को वासना की गहरी नदी में उतरना पड़ रहा है। यहाँ स्त्री खुद को देख रही है। इस स्वाधीनता में अजब सौन्दर्य है। 'स्त्री होने का वैभव' है। यह स्त्री का सार है। यह संग्रह हिन्दी कविता का आत्मविश्वास है और सविता सिंह के काव्य विवेक में बदलाव का सूचक भी ।
वह जो दृश्य में अदृश्य है। जिसका रहस्य अभी है। यह जो प्रकृति है। जो अन्तिम आश्रय है। इस संग्रह की अधिकतर कविताएँ वहाँ जाती हैं। उन्हें देखती हैं। एक तरह से यह आत्माविष्कार है। यह खुद का अनावृत्त होना है। यह वासना का करुणा में विलोपन है। इसमें अपने को अकेले देखते चले जाना है। इस संग्रह में देखने के अनेक दृश्य हैं। देखने को जैसे उत्खनित किया जा रहा है। जब प्रायोजित दृश्यों की भरमार हो तब खुद से देखना जीवन-विवेक हो जाता है। बाघ, अजगर, सारस, हारिल, नीलकण्ठ, हिरनी, मधुमक्खियाँ, गिलहरियाँ आदि दिखती हैं। अपने मनुष्य होने से ऊबे हुए मनुष्य के लिए यह राहत है। यहाँ फिलिस्तीन के लिए भी जगह है।
इस संग्रह की भाषा जैसे खुद नदी हो । बहती और जीवन भरती हुई। यह संग्रह सिर्फ़ सविता सिंह का ही नहीं हिन्दी कविता का महत्त्वपूर्ण संग्रह है। इसका महत्त्व स्थायी है।
- अरुण देव
कवि-आलोचक और 'समालोचन' के सम्पादक
Publication | Vani Prakashan |
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