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Vijaypath : Brand Modi Ki Guarantee

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Vijaypath : Brand Modi Ki Guarantee
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शतरंज हो या सियासी बिसात, दोनों ही जगह जीतने के लिए सही चाल चलनी पड़ती है। आख़िर राजनीति भी एक गेम की तरह ही है, क्योंकि जिसकी तैयारी, मेहनत, लगन, सोच और रणनीति ज़्यादा दमदार होती है, वही विजयपथ का शहंशाह भी बनता है। ऐसे ही एक शहंशाह का नाम है नरेन्द्र मोदी जो 22 साल से निरन्तर सत्ता में बने हुए हैं। जिन्होंने कभी हार नहीं देखी बल्कि जिनका जीत का रिकॉर्ड बनता जा रहा है। 2014 में बदलाव की बयार पर सवार होकर अहमदाबाद से दिल्ली आये, 2014 का चुनाव अपने नाम पर जीते, 2019 का चुनाव नाम और काम पर जीते और अब 2024 का चुनाव मोदी की गारंटी पर जीतने का दावा कर रहे हैं। वहीं इंडिया गठबन्धन उनकी जीत के रथ को रोकना चाहता है। इस गठबन्धन में अप्रत्याशित रूप से एक-दूसरे से लड़ने-भिड़ने वाली पार्टियाँ भी एक मंच पर आ जुटी हैं। आज़ादी के बाद ये पहला मौक़ा है कि जीत के लिए गठबन्धन की इतनी बड़ी फ़ौज खड़ी हुई है। लेकिन फक्त गठबन्धन का भी मामला नहीं है, क्योंकि 2019 में यूपीए का गठबन्धन एनडीए से बड़ा था।

ज़ाहिर है कि बदलाव की प्रक्रिया भी निरन्तर चलती है। नोटबन्दी, जीएसटी, महँगाई और बेरोज़गारी की मार के बाद भी जीत हो जाये तो इसे दीवानगी नहीं तो भला और क्या कहेंगे। आख़िरकार क्या और क्यों है दीवानगी? क्या है ये हिन्दूवाद, राष्ट्रवाद और विकासवाद? ब्रांड मोदी का कमाल या जनकल्याणकारी योजनाओं की बौछार का परिणाम है? इसी गुत्थी को इस किताब में सुलझाने की कोशिश की गयी है। सवाल है कि क्या इंडिया गठबन्धन मोदी के विजयपथ को रोक पायेगा? इसकी परीक्षा आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक पैमाने पर की गयी है। आख़िरकार जीत का क्या मन्त्र है- गठबन्धन की मज़बूती, मुद्दे की मार, निर्णायक नेतृत्व या मज़बूत संगठन? सवाल है क्या परिवारवादी पार्टियों और भ्रष्टाचारी नेताओं की वजह से विपक्षी पार्टियाँ अपनी विश्वसनीयता खो चुकी हैं? ऐसा क्या बदलाव हुआ कि वोटरों की नब्ज़ को विपक्ष नहीं पकड़ पा रहा है?

यह किताब इसी रहस्य के हर सूत्र को तमाम आँकड़ों के साथ सामने लाने का प्रयास करती है। इन आँकड़ों और बारीक तथा रोचक जानकारियों से कई पुराने और नये मिथक भी धराशायी होते हैं और ये नये नज़रिये की ओर भी ले जाते हैं। मसलन, मोदी चेहरा न होते तो 2014 में बीजेपी की सीटें 200 के पार नहीं जा पातीं, गठबन्धन नहीं होता तो बीजेपी को बहुमत नहीं मिलता और एयर स्ट्राइक नहीं होती तो बीजेपी 300 के पार नहीं जाती ।

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धर्मेन्द्र कुमार सिंह (Dharmendra Kumar Singh)

धर्मेन्द्र कुमार सिंह लेखक, जर्नलिस्ट और चुनाव-राजनीतिक विश्लेषक हैं। उनकी उनकी यह यह दूसरी किताब है। 28 साल से देश और राज्य * की राजनीति में उनकी पैनी नज़र है। वे सीटों के गणित को भी परखते हैं और सामाजिक रुझान की केमिस्ट्री पर नज़र रखते हैं। 23 साल तक आजतक और स्टारन्यूज़, एबीपी न्यूज़ में अहम योगदान देने वाले धर्मेन्द्र कुमार सिंह का जन्म बिहार के मधेपुरा ज़िले में हुआ। बिहार के भूपेन्द्र नारायण मण्डल विश्वविद्यालय से गणित में एमए करने के बाद कम्प्यूटर साइंस में डिप्लोमा किया। चुनाव अध्ययन की प्रसिद्ध संस्था सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज़ (सीएमएस) से जुड़े । सीएमएस के चेयरमैन डॉ. भास्कर राव और डायरेक्टर जीवीएल नरसिंह राव (जो अब बीजेपी के सांसद हैं) के साथ काम किया है। इस दौरान कई राष्ट्रीय और राज्य चुनाव सर्वेक्षण सही साबित हुए। चुनाव विश्लेषक की हैसियत से कई राष्ट्रीय चैनलों की परिचर्चा में भाग लिया। राष्ट्रीय अख़बारों और टीवी चैनलों के लिए चुनाव कंसलटेंट भी बने। सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज़ से 1996 से 2000 तक जुड़े रहे। इस दौरान चुनाव अध्ययन के अलावा सामाजिक और मार्केटिंग रिसर्च पर भी काम किया है, जिसमें पेट्रोलियम मन्त्रालय के लिए रसोई गैस सिलेंडरों की खपत के आकलन का अध्ययन भी शामिल है। आईआईएम, बेंगलुरु से लेकर देश के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग से जुड़े प्रोजेक्ट पर भी काम किया है। पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन जर्नलिज्म ऐंड मास कम्युनिकेशन की डिग्री भी हासिल की। चुनाव और राजनैतिक विषयों पर प्रमुख हिन्दी और अंग्रेज़ी पत्र-पत्रिकाओं में लगातार लिखते रहे हैं। चुनाव और टीवी पत्रकारिता में काम करने वाले धर्मेन्द्र सिंह का चुनावी आकलन अक्सर निशाने पर रहा है।

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