Vishwakavya Aur Jaishankar Prasad
पाश्चात्य काव्य की बिखरी हुई दीर्घ परम्परा में समाज और समय की गति के साथ काव्य की धारा प्रवाहित होती रही। विश्वकाव्य में पूर्व-पश्चिम के कवियों का प्रमुख योग है और उन्होंने काव्य की परम्परा को प्रभावित किया। होमर, दान्ते, मिल्टन, शेक्सपियर, बायरन, गेटे, पुश्किन का व्यक्तित्व आज भी अद्वितीय है। विश्वकाव्य से प्रकट है कि महान रचनाकारों में एक निकटता स्थापित की जा सकती है। संसार को अपनी अन्तर्भेदिनी दृष्टि से देखने वाले साहित्यकार जीवन के व्यापक क्षेत्र में कार्य करते हैं। अपने महान व्यक्तित्व से वे समग्र साहित्य को प्रभावित करते हैं। आनेवाली पीढ़ियाँ और युग उनकी रचनाओं से जीवन पाते हैं। कला की दृष्टि से वे अभिव्यंजना के सहज माध्यम को स्वीकार करते हैं, जिसमें भावों का अधिकाधिक प्रकाशन होता रहे। चेस्टरटन का कथन है कि कोई कारण नहीं है कि दो स्वतन्त्र कवि एक ही कल्पना और विचार के विषय में स्वतन्त्र रीति से न सोचें। इस दृष्टि से प्रसाद विश्व के महान कवियों के समीप होते हुए भी किसी बँधी हुई परम्परा का अनुकरण नहीं करते। वास्तव में महान कृतिकारों को किसी सीमा अथवा वाद के बन्धनों में नहीं बाँधा जा सकता । समग्र मानवता और जीवन उनकी परिधि में आ जाते हैं।