Yatha Sambhava
यथासम्भव -
व्यंग्य शब्द को साहित्य से जोड़ने अर्थात् व्यंग्य को साहित्य का दर्जा दिलाने में जिन इने-गिने लेखकों की भूमिका रही है, उनमें शरद जोशी का नाम सबसे पहले आने वाले लेखकों में से एक है। अपनी चिर-परिचित शालीन भाषा में वे यही कह सकते थे कि 'मैंने हिन्दी में व्यंग्य - साहित्य का अभाव दूर करने की दिशा में यथासम्भव प्रयास किया है।' पर सच तो यह है कि उन्होंने इस दिशा में निश्चित योगदान दिया - गुणवत्ता और परिमाण, दोनों दृष्टियों से। उन्होंने नाचीज़ विषयों से लेकर गम्भीर राष्ट्रीय - अन्तरराष्ट्रीय मसलों तक की बाक़ायदा ख़बर ली है। रोज़मर्रा के विषयों में उनकी प्रतिक्रिया इतनी सटीक होती है कि पाठक का आन्तरिक भावलोक प्रकाशित हो उठता है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि शरद जोशी ने हिन्दी के गम्भीर व्यंग्य को लाखों लोगों तक पहुँचाया। प्रस्तुत कृति यथासम्भव में उनके सम्पूर्ण साहित्य में से सौ बेहतरीन रचनाएँ, स्वयं उनके ही द्वारा चुनी हुई, संकलित हैं ।
उनका यह अपूर्व, अनोखा संग्रह व्यंग्य-साहित्य के पाठकों के लिए अपरिहार्य है। दूसरे शब्दों में, यथासम्भव का हवाला दिये बिना आधुनिक भारतीय व्यंग्य-साहित्य की चर्चा करना ही सम्भव नहीं है।
प्रस्तुत है इस महत्त्वपूर्ण व्यंग्य-संग्रह का नवीन संस्करण ।
Publication | Bharatiya Jnanpith |
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