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अहमद फ़राज़ उर्दू के उन शायरों में गिने जाते हैं जिन्होंने अपनी शायरी से आम और खास तबके के लोगों को समान रूप से प्रभावित किया है। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के बाद निर्विवाद रूप से अहमद फ़राज़ को उर्दू का सबसे लोकप्रिय शायर माना जाता है। फ़ैज़ ही की तरह फ़राज़ की शायरी में भी रूमानी और राजनैतिक धाराएँ एक-दूसरे से घुली-मिली नज़र आती हैं और यही फ़राज़ की खास पहचान भी है। अगरचे फ़राज़ ग़ज़ल के शायर माने जाते हैं, लेकिन उन्होंने बहुत-सी आज़ाद और पाबन्द नज़्में भी कही हैं जो उनकी शायरी के एक बिल्कुल भिन्न रंग को उजागर करती हैं। भारत और पाकिस्तान के साहित्यिक वातावरण में फ़राज़ की शख़्सियत और शायरी ताज़ा हवा के एक झोंके की तरह लोगों के दिलों को छूती है और प्रभावित करती है। फ़राज़ की ग़ज़लों और नज़्मों के अब तक कई संकलन आ चुके हैं। इनमें दर्द आशोब, जानाँ-जानाँ और पसअन्दाज़ मौसम उर्दू की आधुनिक शायरी में अपना अलग मुकाम रखते हैं। अहमद फ़राज़ ने साहित्य के किसी खास नज़रिये या गुट से न जुड़कर अपना सरोकार अदब और शायरी और समाज से रखा है। शायद यही वजह है कि उनकी शायरी में सामाजिक परिवर्तन के लिए जद्दोजहद की आहटें साफ़ सुनाई देती हैं। बहुत बार लोग उनके नाम से परिचित न होते हुए भी उनकी शायरी को गाते-गुनगुनाते रहते हैं। फ़राज़ की सफलता का यह सबसे बड़ा सबूत है।

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अहमद फ़राज़ (Ahmad Faraz)

अहमद फ़राज़ का जन्म 14 जनवरी 1931 को नौशेरा (अविभाजित हिन्दुस्तान) में हुआ । उनका नाम सैयद अहमद शाह है और फ़राज़ तखल्लुस । वे कोहाट के एक मशहूर सन्त हाजी बहादुर के वंशज हैं। अपने परिवार के साथ फ़राज़ नौशेरा से पेशावर चले आये जहाँ के प्रसिद्ध एडवर्ड्स कॉलेज में उन्होंने पढ़ाई पूरी की और उर्दू और फ़ारसी में एम.ए. की परीक्षाएँ पास कीं। कॉलेज के दिनों ही से फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ और सरदार जाफ़री उनके आदर्श थे और फ़राज़ की शुरुआती शायरी पर उनका असर भी है। रेडियो पाकिस्तान पेशावर में बतौर स्क्रिप्ट राइटर शुरू करके फ़राज़ ने बाद में पेशावर विश्वविद्यालय में उर्दू का अध्यापन भी किया। 1976 में वे पाकिस्तान की एकेडेमी ऑफ़ लेटर्स (साहित्य अकादेमी) के संस्थापक महानिदेशक बने और बाद में उन्होंने इसी संस्था के अध्यक्ष पद को सुशोभित भी किया। अपने प्रगतिशील और तानाशाही विरोधी विचारों के कारण उन्हें जियाउलहक़ के फ़ौजी शासन के दौरान गिरफ़्तार किया गया जिसके बाद वे तीन वर्ष तक इंग्लैंड, कैनेडा और यूरोप में आत्म-निर्वासन में रहे। लौटने पर उन्हें पाकिस्तान साहित्य अकादेमी का अध्यक्ष और उसके बाद इस्लामाबाद में नेशनल बुक फ़ाउंडेशन का अध्यक्ष बनाया गया। 2004 में फ़राज़ को उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए 'हिलाल-ए-इम्तियाज़' सम्मान दिया गया जिसे उन्होंने 2006 में सरकार और उसकी नीतियों से मोहभंग होने पर लौटा दिया। अब तक फ़राज़ की 13 किताबें प्रकाशित हुई हैं। समग्ररूप से उनकी रचनाएँ शहरे-सुखन आरास्ता है शीर्षक से उपलब्ध हैं।

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