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Zindagi Ko Dhoodhate Hue : Aatmkatha-2

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"ज़िन्दगी को ढूँढ़ते हुए : श्यौराज जैसा दलित बालक बचपन से ही अपने यथार्थ अस्तित्व के प्रति बेहद सजग और संवेदनशील है। बचपन से युवावस्था तक झेले गये अनन्त अभावों, अपमानों, अन्यायों और नाना प्रकार के जाति-जन्य अन्यायों से चौबीस बाई सात के हिसाब से आहत दलित ज़िन्दगी की दिलों को दहला देने वाली यह विकट आपबीती को एक बार पढ़कर आप कभी भूल नहीं सकते। यह आपबीती आपसे भी सवाल पूछती चलती है कि जब एक बड़े समाज का जीवन इतना कठिन है तो आप इतने चैन में क्यों हैं? श्यौराज की सजगता जिस बेचैनियत को पैदा करती है, उसी से श्यौराज बेचैन बनते हैं, उनका यह उपनाम एकदम सटीक है। सब सहते हुए लेकिन एक पल को भी कहीं ‘सेल्फ पिटी' और ‘हाय रे दुर्भाग्यता-हतभाग्यता’ का परिताप करने की जगह, उनको अपने अस्तित्व की कंडीशन मान और अपने कुछ शुभचिन्तकों व साथियों के सहयोग से उनसे भी आगे निकलने की जिद, श्यौराज को एक नये प्रेरणादायक व्यक्तित्व का स्वामी बनाती है। - सुधीश पचौरी ★★★ इस किताब को पढ़ने से हमें अपने ही देश और समाज के एक ऐसे हिस्से की जानकारी मिलती है, जो हमारे लिए सामान्यतः अपरिचित और अनजान रह जाता है। हम अपने ही एक भाग को कुचलते रहते हैं, उसकी उपेक्षा और उसका तिरस्कार करते रहते हैं। इस किताब को पढ़कर सहृदय पाठक अधिक समझदार, अधिक देशभक्त और अधिक मानवीय हो सकताI - विश्वनाथ त्रिपाठी ★★★ आत्मकथा के इस खण्ड से गुज़रते हुए एक बात और समझ में आती है। श्यौराज जैसे किसी बच्चे का मुक़ाबला सिर्फ़ उस व्यवस्था से नहीं है जिसमें अगड़ी या मझोली जाति वाले शोषकीय भूमिका में हैं, उन अपनों से भी है जो एक स्तर पर यह शोषण झेलते भी हैं और करते भी हैं। जीवन के अभावों और सन्त्रासों ने उन्हें मनुष्य कम रहने दिया है–वे झूठ बोल सकते हैं, झगड़ा कर सकते हैं, आगे बढ़ते किसी शख़्स को रोकने की कोशिश कर सकते हैं, किसी का मनोबल तोड़ने के लिए किसी हद तक भी जा सकते हैं। यह दूसरा मोर्चा है जो लगातार बेचैन जी जैसे लेखक को भटकाता रहता है। -प्रियदर्शन ★★★ डॉ. श्यौराज सिंह बेचैन की आत्मकथा मेरा बचपन मेरे कन्धे पर को पढ़ने के बाद लगा कि मैं अपनी सदी में नहीं हूँ, जैसे-जैसे मैं इसे पढ़ता गया, वैसे-वैसे अपने देश के लोकतन्त्र और उसके बारे में गढ़े गये सारे नारे ध्वस्त होते चले गये। बीसवीं सदी का सारा हिन्दी साहित्य बेमानी नज़र आने लगा। व्यवस्था बदलने की राजनीति के सारे दल पाखण्ड दिखाई देने लगे। एक किताब सारे समाज को नंगा करती चली गयी, गांधीवाद को भी और लोकशाही को भी। –कँवल भारती "
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श्यौराज सिंह बेचैन (Sheoraj Singh Bechain)

"श्योराज सिंह बेचैन : जन्म : 5 जनवरी, 1960; गाँव-नदरोली, बदायूँ, उत्तर प्रदेश। शिक्षा : पीएच. डी., डी.लिट्.। पूर्व अध्येता भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, राष्ट्रपति निवास, शिमला| 'हिन्दी दलित साहित्य का इतिहास' विषय पर शोध| कृतियाँ : आत्मकथा : ज़िन्दगी को ढूँढ़ते हुए, मेरा बचपन मेरे कन्धों पर। अंग्रेज़ी 'तहलका' में माई चाइल्डहुड ऑन माई शोल्डर्स नाम से 35 किश्तें प्रकाशित, जिनका बाद में पंजाबी, मराठी, उर्दू और जर्मन भाषाओं में अनुवाद; कहानी-संग्रह : हाथ तो उग ही आते हैं, भरोसे की बहन, मेरी प्रिय कहानियाँ; कविता-संग्रह : चमार की चाय, क्रौंच हूँ मैं, नयी फ़सल, भोर के अँधेरे में; चिन्तन : दलितेतर वर्ग के उपन्यासों में दलित समस्या और समाधान, हिन्दी दलित पत्रकारिता पर पत्रकार अम्बेडकर का प्रभाव (शोध-ग्रन्थ, लिम्का बुक रिकार्ड-1999 में दर्ज), अम्बेडकर, गांधी और दलित पत्रकारिता, मूकनायक के सौ साल और अस्मिता संघर्ष के सवाल, मीडिया में सामाजिक लोकतन्त्र की तलाश, समकालीन हिन्दी पत्रकारिता में दलित उवाच, दलित- क्रान्ति का साहित्य, मूल खोजो विवाद मिटेगा, अन्याय कोई परम्परा नहीं, साहित्य में दलित- जीवन के प्रश्न, दलित-दखल, सामाजिक न्याय और दलित-साहित्य, स्त्री-विमर्श और पहली दलित शिक्षिका, उत्तर- सदी के कथा-साहित्य में दलित-विमर्श, सम्पादन : प्रधान सम्पादक : बहुरि नहीं आवना, 'हंस' के प्रथम दलित विशेषांक सत्ता-विमर्श और दलित (2004) के अतिथि सम्पादक; विशेष : 'अमर उजाला', 'हिन्दुस्तान', 'राष्ट्रीय सहारा' में विशेष रूप से लेख प्रकाशित। 'हंस', 'कथादेश', 'जनसत्ता', 'नयी धारा’, ‘समकालीन भारतीय साहित्य' आदि पत्र-पत्रिकाओं में कहानियों का प्रकाशन। पुरस्कार : ‘इंटरनेशनल लिटरेरी अवार्ड' - यू.एस.ए. (थर्ड अम्बेडकर इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस, पेरिस), 'सुब्रह्मण्यम भारती सम्मान', 'नेशनल अम्बेडकर अवार्ड' (भा.द.सा.अ., दिल्ली), 'सन्तराम बी.ए. स्मृति सम्मान', 'नयी धारा सम्मान', हिन्दी अकादमी, दिल्ली का ' गद्य विधा सम्मान', 'साहित्य भूषण सम्मान' (उ.प्र. हिन्दी संस्थान), 'बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर सम्मान', महू संस्थान (म.प्र.), 'कबीर सेवा सम्मान', ‘स्वामी अछूतानन्द अति विशिष्ट सम्मान', उ.प्र., 'डॉ. राजेन्द्र प्रसाद अवार्ड', दिल्ली, मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी का कृति केन्द्रित प्रथम पुरस्कार। "

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