Deva Shishu
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"देवशिशु -
अनुपूर्वा अमेरिका से भारत अनिच्छा से वापस आयी थी। वह वहाँ कला शिक्षक के रूप में अपना व्यवस्थित जीवन जी रही थी।
वह अमेरिका के आरामदायक उपनगरीय जीवन से स्थानान्तरित होकर आयी थी। उसे यह तनिक भी आभास नहीं था कि उसका भारत वापसी का फ़ैसला जीवन को बिल्कुल बदल देनेवाला साबित होगा।
एक बार उसकी कॉलेज की पुरानी साथी ने उसका परिचय 'सेरिब्रल पलसि' से पीड़ित बच्चों के स्कूल 'आशा ज्योति' से कराया।
यहाँ आकर उसे न जाने क्या लगा कि उसने अस्थायी आर्ट टीचर के रूप में स्वयंसेवक बनने का फ़ैसला ले लिया। अनुपूर्वा बच्चों को सिखाने लगी कि कैसे चित्र बनाकर उसमें रंग भरते हैं आदि-आदि; लेकिन उसे क्या पता था कि बच्चे अनजाने में उसे जीवन का वास्तविक पाठ पढ़ा रहे हैं——बीमारी से लड़ने, दोस्ती, प्रेम और हँसी का पाठ। बाहर की दुनिया इन्हें भले ही शारीरिक या मानसिक दृष्टि से कमज़ोर समझे, इनके अन्दर कुछ कर गुज़रने की अपार क्षमताएँ हैं।
अनुपूर्वा और कोई नहीं, स्वयं लेखिका हैं, जिन्होंने इन बच्चों के जीवन के अन्तरंग पहलुओं को बहुत नज़दीकी से जाना-समझा और उसे उपन्यास के रूप में शब्दबद्ध किया। एक बहुत ही रोचक कथानक पहली बार हिन्दी पाठकों के समक्ष।
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