Devaki Hona Yashoda Bhi

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आज उदासीन धरती पर मैं अपनी कविता के अन्तरंग अनुभवों से टिकी हुई हूँ। अपनी कविता में मैं आत्मीय अनुभूतियों को अकृत्रिम रूप में ही अभिव्यक्त करना चाहती हूँ । समकालीन समय सर्जनशीलता पर अधिक जोर देता-सा नहीं लगता। अपने प्रयोजन के मानक में वह उसे तोलना चाहता है । आज चेतना की सूक्ष्मता अपनी सुकुमारिता खोती जा रही है यह अहसास भी होने लगा है, अतः कवि अनजाने में पाठकों के लिए एक वस्तु सा बनता जा रहा है; फिर भी वह किसी को आहत करना नहीं चाहता। किन्तु, उसमें सत्य, शिव और सुन्दर के प्रति आस्था बनी रहती है । और मुझे लगता है मानो मेरी कविता मेरे लिए काल से काल को जोड़ने का सम्पर्क सूत्र है, अटूट । वह मंगल सूत्र के समान सुरक्षित, संरक्षित है उसी से मेरा काव्य-जीवन अवक्षयित समय के द्वारा कतई कलंकित नहीं हुआ है। सौन्दर्यबोध, अनुराग मेरी कविता की सुकुमारिता है । मेरी कविताओं के इस संकलन, 'देवकी होना, यशोदा भी...' में मेरे लिए मानो उपस्थित वर्तमान में महत्त्वपूर्ण है शैशव । विशाल जीवन में सुन्दर स्नेहमय और आत्मीयता के उपादानों में शैशव ही भरा पूरा कर देता है। लगता है सुन्दर बचपन था जिसका, वह ही है सब से अधिक सौभाग्यशाली ।

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