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Dukh Ki Shakti

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दुख की शक्ति चाङ की आत्मकथा ही नहीं, रहस्यमयी परतों में लिपटे चीनी ग्रामीण समाज, उसके रीति-रिवाजों, लड़कियों के प्रति धारणा और दुःसह की दलदल से निकल अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने की उनकी अदम्य साहसिक यात्रा का लोमहर्षक लेखा-जोखा भी है। इस आत्मकथा में वे बताती हैं कि भयानक जंगलों के बीच से किस प्रकार संघर्ष करते हुए उन्हें स्कूल जाने के लिए रोज़ाना दस किलोमीटर का लम्बा सफ़र तय करना पड़ता था। स्कूल के रास्ते में आते-जाते किस प्रकार उन्हें भयानक जंगली जानवरों और मौसम की जानलेवा परिस्थितियों से मुक़ाबला करना पड़ता था। इसमें वे अपनी बहनों के त्रासदीपूर्ण जीवन की पीड़ा-भरी पगडण्डियों पर भी हमें साथ ले जाती हैं। ऐसे माहौल में जहाँ ग़रीबी पेट न भरने दे और मौसम की मार ज़िन्दगी के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगा दे, वहाँ कैसे चाङ एक पेशेवर लेखिका और रिपोर्टर बनने में कामयाब हुईं, यह किताब उस गहर में भी हमें झाँकने का मौक़ा देती है। इस आत्मकथा के पन्नों को पलटते पाठक यह जान पायेंगे कि जो चाङ स्पीड स्केटर रहने के बावजूद खेल और पढ़ने में प्रतिभाशाली होने के बावजूद कॉलेज की शिक्षा से वंचित रहीं, वे कभी हिम्मत नहीं हारीं, बल्कि प्राप्त अनुभवों को ताक़त बनाया और इस मूल को जाना कि हौसला बुलन्द हो तो कठिनाइयों के पर्वत भी आसानी से लाँघे जा सकते हैं। जिन दिनों चाङ अपनी क़िस्मत को लेकर एक गहन अँधेरे में थीं, उन्हीं दिनों उनके पति जो खुद एक अच्छे एथलीट रह चुके थे, उन्होंने उनसे एक मर्तबा ज़िक्र किया कि वे एक ऐसा उपन्यास लिख सकते हैं जिसमें उसके चरित्र उनके लिए चौंपियनशिप जीतते हैं, और इसी बात ने चाङ को लिखने के लिए प्रेरित किया। हम कह सकते हैं कि दुख की शक्ति नियति के हाथों से क़लम छीनकर स्वयं अपना भाग्य लिखने की ऐसी दुर्लभ गाथा है, जिसका पाठ वर्षों ही नहीं, सदियों किया जाता रहेगा।
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