Ghazal - Dasta

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हरिवंशराय बच्चन ने अपनी आत्मकथा दशद्वार से सोपान तक में जर्मन फ़िलॉस्फ़र नीत्शे को क्वोट किया है; “जितना कुछ लिखा जाता है, उसमें से मैं उसकी क़द्र करता हूँ, जो किसी ने अपने रक्त से लिखा है। रक्त से लिखकर देखो, फिर देखोगे रक्त में तुम्हारी आत्मा बोलती है। किसी अपरिचित रक्त को समझ पाना आसान तो नहीं है, मैं सिर्फ़ समय काटने के लिए पढ़ने वालों से नफ़रत करता हूँ।" —नीत्शे (दस स्पोक ज़रथुस्त्र)
हरिवंशराय बच्चन ने अपनी आत्मकथा दशद्वार से सोपान तक में जर्मन फ़िलॉस्फ़र नीत्शे को क्वोट किया है; “जितना कुछ लिखा जाता है, उसमें से मैं उसकी क़द्र करता हूँ, जो किसी ने अपने रक्त से लिखा है। रक्त से लिखकर देखो, फिर देखोगे रक्त में तुम्हारी आत्मा बोलती है। किसी अपरिचित रक्त को समझ पाना आसान तो नहीं है, मैं सिर्फ़ समय काटने के लिए पढ़ने वालों से नफ़रत करता हूँ।" —नीत्शे (दस स्पोक ज़रथुस्त्र) ★★★ यह ग़ज़ल-दस्ता भी इसी भावना से कही गयी तीन ख़ास ग़ज़ल-संग्रहों का इंज़िमाम है। हर कहन, शे'र, ग़ज़ल में अपने हृदय की बात, विचारों एवं भावों को ग़ज़ल श्रोताओं एवं पाठकों के हृदय तक सम्प्रेषित करने का प्रयास है। शायर ग़ज़ल कहे और श्रोता उसके मर्म से अनभिज्ञ रह जाये, तो यह शायर की असफलता का पर्याय बन जायेगा। शायर इसी भावना को लेकर अपनी शायरी के साथ साहित्य की दुनिया में उतरता उम्मीद करता है कि उसकी फ़िक्र के मर्म को श्रोता या पाठक रस-भीना होकर जियेगा। ऐसा न हो हवा-ए-तरब मोतबर न हो, गुलज़ार तो चमन हो कोई दीदा वर न हो। इस ग़ज़ल-दस्ता के ग़ज़ल-संग्रह—आरज़ू की शाख़ पर, सूरज चाँद कहकशाँ और खिल गया गुंचा कोई-के अश' आर में हर रंग और ख़ुशबू के फूल समाहित किये गये हैं, और ये बात तो तय है, कोई न कोई रंग इसमें से आपको भी अपने रंग में रंग ही लेगा। इसी आशा के साथ, पाठकों के हाथों में यह ग़ज़ल-दस्ता प्रेमपूर्वक रख रहा हूँ। —अशोक सिंह न्यू यॉर्क, संयुक्त राज्य अमेरिका, दिसम्बर 1, 2024

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