Hazaron Chehre Aise

As low as ₹595.00
In stock
Only %1 left
SKU
9789350724620

हज़ारों चेहरे ऐसे - 
नये लेखक पर भाई लोग अक्सर यह कहकर चढ़ते हैं- लेखक नया है, मसाला नया नहीं है, समझ नहीं पड़ता साढ़े चार अरब साल बूढ़ी धरती, बारह हज़ार साल बूढ़ी मानव सभ्यता, हमसे पहले हमारे दादा लोग सारा कुछ लिख गये तो देर से पैदा होने में अपनी क्या ग़लती? फिर भी नया...नया...नया...। इस नयेपन की चाह ने हमारे समाज में तमाम वेश्यालय खुलवा दिये पर वहाँ भी नया क्या? सिवाय एक मिथक के, सब कुछ वही हज़ारों साल पुराना, लेकिन ये मिथक अनुभवी लोग ही समझते हैं। फिर भी अनुभवी पाठकों और आलोचकों से क्षमा चाहते हुए बिल्कुल नया करने का प्रयास किया है, विषय के नये होने का दावा फिर भी नहीं, ट्रीटमेंट की गारंटी है। इस नयेपन का उद्देश्य कोई सन्देश देना या समाज सुधार जैसी कोई बड़ी तोप मारना भी नहीं है, दिखा सो लिखा यानी हमारे समाज का म्यूरल डिपिक्शन बस। हालाँकि पैंतालीस तक पहुँचते-पहुँचते डेढ़ नम्बर का चश्मा चढ़ गया है, आरोप लग सकता है कि नज़र में कमी आ गयी होगी। लेकिन जैसा विषय है, उसमें आँखों की ज़रूरत होती भी नहीं, सब कुछ दिमाग़ से महसूस किया जाता है, आँखें तो सहायक क्रिया की भाँति हैं। विषय के स्तर पर यह फ्रायड के उस सिद्धान्त का अनुपालन करता हुआ लगता है जिसके अनुसार मानव मस्तिष्क अपनी जाग्रत अवस्था का एक बड़ा परसेंटेज सेक्स के बारे में सोचने में बिताता है, थोड़ा-सा फ़र्क है, वो ये कि शुद्ध भारतीय परिप्रेक्ष्य मनुष्य का व्यापक अर्थ पुरुष होता है, स्त्री तो इस परसेंटेज का कारण है और कैटलिस्ट भी।

 

 

Reviews

Write Your Own Review
You're reviewing:Hazaron Chehre Aise
Your Rating
Copyright © 2025 Vani Prakashan Books. All Rights Reserved.

Design & Developed by: https://octagontechs.com/