Hindi Upanyas Naya Path
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हिन्दी के चर्चित और अनिवार्य महत्त्व के उपन्यासों की पड़ताल यहाँ पाठकीय नज़रिये से की गयी है। इसलिए यह विश्वसनीय है। पत्रिका के स्पेस को भरने के लिए फिलर की तरह निपटाया गया पुस्तक-समीक्षावादी रवैया और पेशेवर आलोचकों के हिसाब-किताब बराबर कर देने वाले तेवर और मुद्राएँ भी यहाँ नहीं हैं। हेमन्त कुकरेती जैसे इन उपन्यासों का नया आलोचनात्मक पाठ सुना रहे हैं। क्योंकि यहाँ पढ़ने से ज़्यादा सुनने का आस्वाद मिलता है। इसलिए कई अनसुलझी गुत्थियाँ सुलझ जाती हैं। स्पष्टता-सरलता इस प्रत्यक्ष आलोचना शैली को धार देने वाली विशेषताएँ हैं। बेशक हेमन्त कुकरेती हिन्दी के महत्त्वपूर्ण कवि और साहित्य के समर्थ अध्यापक हैं लेकिन उन्होंने कम लिखने के बावजूद आलोचना को भी उतनी गम्भीरता से लिया है। वे पार्टटाइम आलोचक नहीं हैं क्योंकि आलोचना उन्होंने भीतरी जरूरतों के दबाव से की है। हेमन्त कुकरेती कई बार पढ़े गये उपन्यासों का जो नया पाठ उजागर करते हैं, वह मूल पाठ का विस्तार करता है। यही इस आलोचना-कर्म की सार्थकता है। -नरेन्द्र मोहन