गन्धर्वसेन - 'मन्यसेव' पुरुष की आँखों में देखी स्त्री की इच्छाओं स्वप्नों उम्मीदों की यह दुनिया है जिसमें प्रेम की तीव्र उत्तेजना, सौन्दर्य का सहज दर्प और आहत प्रेम की टीस मौजूद है यहाँ नारीवादी सरलीकृत टोटके नहीं है बल्कि स्त्री की उस त्रासदी को शब्दबद्ध किया गया है जिसका सूत्रधार पुरुष सदियों से होता आया है। इस औपन्यासिक कृति में अद्भुत सम्मोहन है। कथारस की दृष्टि से पौराणिक रचनाओं सरीखा आस्वाद प्रदान करनेवाली इस रचना की पृष्ठभूमि बेशक ऐतिहासिक है लेकिन यहाँ लेखक ने अकादमिक इतिहासकार की तरह कोरा तथ्य-संग्रह नहीं किया है बल्कि नीरस ऐतिहासिक ब्योरों का जैसा रचनात्मक इस्तेमाल किया है, वह एक अनुभव है। इसके पात्रों के चित्रण और वातावरण पर इतिहास की छाप है। दूसरी सदी की उज्जयिनी के दुर्ग, सप्तखण्डप्रासाद, विधियों, प्रेक्षागार, उद्यान, महाकालवन सप्तखण्डप्रासाद, राजनर्तकी के प्रासाद के साथ ही लेखक ने उस समय के मनुष्य और उनके सामाजिक सरोकारों को बख़ूबी उभारा है लेकिन वह मालवा-निमाड़ के प्राकृतिक उपकरणों के स्थिर वर्णनों की बजाय उनमें जीवन और सबसे बढ़कर काल की अन्तहीन गति को पकड़ता है। यही कारण है कि इस उपन्यास के पात्र आज के मनुष्य लगते हैं क्योंकि लेखक ने मनुष्य के शाश्वत जीवन धर्म को पहचाना है। गन्धर्वसेन क्षिप्रा के दर्द की विचलित करनेवाली मर्मकथा है। जिसमें गलत भावुकता या करुणावादी अतिरेक नहीं है। दूसरी सदी की नायिका सरस्वती और उज्जयिनी नरेश गन्धर्वसेन की ऐसी प्रणयगाथा है जिसमें नारी-मन का सच्चा सन्ताप और शोकाकुल शब्दों में लिखी उसकी व्यथा अन्तस को झकझोर देती है। लेखक ने पारम्परीण शास्त्र, इतिहास और रचनाओं से सहायता ली है लेकिन दृष्टि उनकी अपनी है इसीलिए यह बृहत् उपन्यास अतीत का मौलिक पुनःसृजन करता है।
शरद पगारे - जन्म : खण्डवा, मध्य प्रदेश। शिक्षा : इतिहास में एम.ए., पीएच.डी.। प्रकाशित कृतियाँ : उपन्यास गुलारा बेगम शहजादा खुरंभ (शाहजहाँ), तवायफ़ गुलारा की दास्तान-ए-मुहब्बत मराठी, गुजराती, उर्दू मलयालम एवं अंग्रेजी में अनूदित। गन्धर्वसेन : कालकाचार्य कथानक पर आधारित उज्जयिनी नरेश गर्दभिल्ल गन्धर्वसेन एवं सुन्दरी साध्वी सरस्वती की प्रणय व्यथा बेगम जैनाबादी शहजादा औरंगजेब-हीराबाई जैनाबादी की महत की दास्तान। दो बार पुरस्कृत 'क्षितिज थियेटर' ग्रुप नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा के ग्रेज्युएट्स की संस्था द्वारा नाट्य रूपान्तर। उजाले की तलाश दक्षिण भारत की देवदासी प्रथा, नक्सलवाद एवं राजनैतिक प्रशासकीय भ्रष्टाचार पर आधारित पाटलिपुत्र की सम्राज्ञी नन्द-मौर्य कालीन सम्राट धननन्द, महामात्य राक्षस, आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य 'कौटिल्य', चन्द्रगुप्त मौर्य, सम्राट् बिन्दुसार एवं महानायिका रूपसी सम्राज्ञी धर्मा 'सुभद्वांगी'-सम्राट अशोक की माँ की महागाथा। कहानी संग्रह : एक मुट्ठी ममता, सान्ध्य तारा, नारी के रूप, दूसरा देवदास, श्रेष्ठ कहानियाँ अनेक कहानियों का ओड़िया, मराठी, मलयालम, कन्नड़, तेलुगु में अनुवाद एवं प्रकाशन। शोध प्रबन्ध : पूर्व मध्ययुगीन धार्मिक आस्थाएँ एक ऐतिहासिक सर्वेक्षण (सन् 650 से 1150)।
सम्मान एवं पुरस्कार : मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् का विश्वनाथ सिंह पुरस्कार (गुलारा बेगम); अखिल भारतीय दिव्य एवं हिन्दी साहित्य सम्मेलन का वागीश्वरी पुरस्कार (बेगम जैनाबादी); मध्य प्रदेश लेखक संघ का अक्षर आदित्य अलंकरण; साहित्य मण्डल, श्रीनाथ द्वारा (राजस्थान) का हिन्दी भाषा भूषण सम्मान; अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन का हिन्दी भाषा भूषण सम्मान, मध्य प्रदेश कला परिषद् का अभिनव शब्द शिल्पी सम्मान; साहित्य अकादेमी, भोपाल का बालकृष्ण शर्मा नवीन सम्मान (पाटलिपुत्र की सम्राज्ञी)।