समर्थ युवा कथाकारों की सम्भावनाशील पाँत में उषा शर्मा की सर्जनात्मक ऊर्जा स्वयं को विशेष रूप से पढ़े जाने और अलग से रेखांकित किये जाने की माँग ही नहीं करती बल्कि उनकी बहुकोणीय कथाभिव्यक्ति और कहन में विन्यस्त सुस्पष्ट कथादृष्टि, समकालीन युवा रचनाशीलता के समक्ष कुछ नयी चुनौतियों की चौखटें उघाड़ती हुई इस मुद्दे पर विचार करने की विनम्र माँग करती है कि कथा कहन में शैल्पिक गुँजलक का सायास आरोपण कथा के स्वाभाविक विकास को कहीं बाधित नहीं करता।
जाहिर है उषा की कहानियाँ शैल्पिक गुँजलक से बाहर रहने के लिए सचेत हैं। वे अपने कथा विन्यास को बौद्धिक चाशनी में लपेट पाठकों को चमत्कृत करने से परहेज करती हैं। उनकी कथा दृष्टि का सुधी पाठकों से सहज तादात्म्य स्थापित हो जाता है और यह उनकी बड़ी विशेषता लगती है। इसके लिए मैं उन्हें बधाई देना चाहती हूँ। उनकी अनेक उल्लेखनीय कहानियाँ चाहे वह 'फूलदेही की छत' हो या 'बर्फ़' या 'माँ मर गयी' या 'झूलाघर' या 'अच्छा चलता हूँ' आदि इसी वैशिष्ट्य से स्पन्दित अपनी दृष्टि दायरे से सहज जोड़ लेने वाली कहानियाँ हैं कि पाठक अन्त पर पहुँचकर स्वयं को द्वन्द्व के कठघरे में दाखिल हुआ महसूस करता है। - भूमिका से
"उषा शर्मा
कई दर्जन कहानियाँ व बाल कहानियाँ, समीक्षाएँ, आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं- परिकथा, साहित्य अमृत, शब्द योग, जनसत्ता, दैनिक जागरण, सहारा समय, पराग, बाल भारती, दिनमान, नवभारत टाइम्स, दैनिक हिन्दुस्तान, बालवाणी आदि में प्रकाशित।
एक कहानी पुस्तक साँवली प्रकाशित।
तीन अनूदित पुस्तकें और संजीव कपूर का खाना ख़ज़ाना प्रकाशित। दो पुस्तकें प्रकाशनाधीन। पूर्वी योरोप के देश बल्गारिया के सोफिया विश्वविद्यालय में एक वर्ष मानद अध्यापन।
संसार के एक दर्जन से अधिक देशों की यात्रा।
आकाशवाणी और दूरदर्शन से सम्बद्ध।
पाँच पटकथाओं का लेखन एवं पंचतन्त्र की छह कहानियों पर निर्मित नाटकों में अभिनय व स्वरांकन।
दूरदर्शन के अन्य कई कार्यक्रमों में प्रतिभागिता।
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में 12 वर्ष का अध्यापन अनुभव।
सम्प्रति : स्वतन्त्र लेखन।
सम्पर्क : एन 9/87 डी-77, जानकी नगर, पोस्ट- बजरडीहा, वाराणसी-221109"