भाषा के बारे में लोग क्या सोचते हैं, यह बहुत महत्त्वपूर्ण है। किसी भी उदीयमान देश के लिए भाषा की उपयोगिता को समझना देश की होने वाली प्रगति का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है। भाषा के महत्व को समझने का आधार भावुकता नहीं, अपितु रोज की ज़िन्दगी में उसकी उपयोगिता है। भाषा के माध्यम से ही हम अपने विचारों, भावों, अपने शोध के निष्कर्षों और अपनी महत्वाकांक्षाओं को अभिव्यक्त करते हैं। भाषा के विषय में भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में ऐतिहासिक, सामाजिक व राजनीतिक दृष्टि से और भाषा के स्वरूप की दृष्टि से भाषा के अनेक पहलू हैं जिन पर विद्वान अपने शोध के आधार पर समय-समय पर लिखते रहे हैं। प्रस्तुत पुस्तक उन्हीं विचारों का निचोड़ है। उन्हीं विचारों को लिखते हुए लेखक ने अपने शोध और अपने चिन्तन के आधार पर भी हिन्दी भाषा के अनेक पहलुओं की चर्चा इस पुस्तक में की है। हिन्दी भाषा की कुछ अपनी भाषागत विशेषताएँ हैं जिनको इस पुस्तक में उजागर किया गया है। उदाहरण के लिए हिन्दी भाषा में औपचारिक शब्दावली और अनौपचारिक शब्दावली में जो अन्तर दिखाई पड़ता है। उतना अन्तर अंग्रेज़ी में नहीं दिखता। हिन्दी व अंग्रेज़ी का सम्मिश्रण, जो आज हिन्दी भाषियों की बोलचाल में दिखाई पड़ता है, उसका प्रयोगकर्ताओं की दोनों भाषाओं में प्रवीणता पर क्या असर पड़ता है और एक सशक्त समाज और एक सशक्त भाषा का साहचर्य कितना आवश्यक है-आदि विषयों पर नपे तुले शब्दों में यहाँ चर्चा है। आशा है यह पुस्तक भाषा सम्बन्धी विषयों पर पाठकों के विचारों में स्पष्टता ला सकने में कुछ योगदान कर सकेगी और समाज में भाषा सम्बन्धी चर्चा को वैज्ञानिक ढंग से आगे बढ़ा सकेगी।
"डॉ. सुरेन्द्र गंभीर -
यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेन्सिल्वेनिया, कॉरनेल यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ़ विस्कान्सिन में अध्यापन कार्य (1973-2008)। सम्प्रति सेवानिवृत्त वरिष्ठ प्राचार्य यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेन्सिल्वेनिया से भाषा-विज्ञान में पीएचडी। अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडियन स्टडीज़ भाषा-समिति के भूतपूर्व अध्यक्ष और भारत में 13 विभिन्न भाषा कार्यक्रमों के निदेशक। पैन-इन-इंडिया स्टडी-अबरॉड कार्यक्रम के भूतपूर्व संस्थापक निदेशक। अमेरिका में अनेक भाषा से सम्बन्धित कार्यक्रमों के सलाहकार। अमेरिका, चैक रिपब्लिक, मॉरीशस तथा भारत में अनेक संगोष्ठियों में बीज-वक्ता। गयाना, त्रिनिदाद, सूरीनाम, मॉरीशस, भारत और अमेरिका के प्रवासी भारतीयों के बीच फ़ील्ड-वर्क, शोध और लेखन। सामाजिक भाषा-विज्ञान, प्रवासी भारतीय समाज, विदेशी भाषा अधिग्रहण, व्यावसायिक भाषा, संस्कृत साहित्य, हिन्दू माइथोलॉजी, भारतीय दर्शन विषयों में विशेषज्ञता और प्रकाशन। सात पुस्तकें और सौ से अधिक शोध लेख। अनेक राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों से सम्मानित। विश्व हिंदी सम्मेलन, न्यूयार्क (2007) में और वर्ष 2012 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित। फ़िलाडेल्फ़िया (अमेरिका) में सपरिवार स्थायी निवास।