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बुरे मौसम में

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बुरे मौसम में - 
'बुरे मौसम में' की कहानियों का केन्द्र घटना के बजाय वह मनोवृत्ति है जिसके द्वारा हम व्यक्ति की मानसिक परिस्थितियों तक पहुँच सकते हैं। इन कहानियों में एक अनकहा अहसास है जो आम इन्सानों के अन्दर घुटता है। कहानीकार उसे कहानी का शरीर देकर बाहर की हवा में ले आता है। अगर साहित्य का एक उद्देश्य कैथार्सिस भी है तो ख़ालिद जावेद की कहानियाँ इस कैथार्सिस का काम भली भाँति करती हैं।

आम तौर पर कहानी में जिस केन्द्रीकरण और एकत्व की बात की जाती है, वह ख़ालिद जावेद के केन्द्रीकरण और एकत्व के दायरे को तोड़ कर अपने लिए एक नयी सृष्टि की रचना करती है।

अन्तिम पृष्ठ आवरण - 
आपकी कहानी 'बुरे मौसम में' का अंग्रेज़ी अनुवाद Season of fever पढ़कर में बहुत प्रभावित हुआ हूँ। कहानी अद्भुत है। इसमें इस क़िस्म की Dark intensity पायी जाती है जो मैंने अब तक अपनी पढ़ी हुई किसी कहानी में नहीं देखी... आप अपनी दूसरी कहानियों का अनुवाद ख़ुद ही हिन्दी में क्यों नहीं कर लेते? आपके कहानी लिखने का अन्दाज़ और बयान इतना नया है कि हिन्दी वालों को भी इससे परिचित होने का मौका मिलना चाहिए।
-निर्मल वर्मा
ख़ालिद जावेद की कहानियाँ अपने पढ़े जाने से ज़्यादा सर-रियलिस्टिक तस्वीरों की एक श्रृंखला की तरह अपने देखे जाने की माँग करती हैं। वह बस यही नहीं देखते जो सामने दिखाई देता है। उनकी कोशिश होती है अपने पात्रों और उन पात्रों के ज़रिये सामने आने वाली परिस्थितियों के छिपे कोनों और परतों तक पहुँचने की। ....ये कहानियाँ बहुत ‘अकेली और बेमेल' और हर तरह की बाहरी 'मदद और सहारे' से वंचित कहानियाँ हैं... इनको सहारा मिलता है सिर्फ़ अपनी घनी सरकश ज़बान और हर तरह की बाहरी बन्दिशों को ख़ातिर में न लाने वाले बयान से... गहरे अस्तित्ववादी प्रश्नों और वैचारिक बहसों के पहलू ख़ालिद जावेद के यहाँ इस ख़ामोशी के साथ सामने आते हैं जैसे टहनियों पर आँखवे और कोपलें फूटती हैं। ये कहानियाँ करअत उल-ऐन हैदर, इन्तिज़ार हुसैन, नय्यर मसूद की कहानियों से तो अलग हैं ही, समकालीन लिखने वालों से भी कोई समरूपता नहीं रखतीं।
-शमीम हनफ़ी ख़ालिद
 
तुम्हारी कहानियाँ पढ़ कर मुझे अपने दो बहुत पसन्दीदा कहानीकार याद आते हैं। एक तो पोलैंड का कहानीकार 'ब्रोनो शुल्ज़' और दूसरा 'काफ्का'। इन कहानियों का माहौल चमकदार नहीं है बल्कि वह धुंधले-धुंधले अंधेरे की तरह है जिसमें चीज़ें अपनी असली शक्ल में नज़र आने की ज़िद करती दिखाई देती हैं और जहाँ घटने वाली घटना उस धुँधले अँधेरे में चलने वाली साँसों और घड़कनों की आवाज़ को भी दर्शाती हैं। मगर सबसे अहम इन कहानियों का वर्णन है। यह वह समय है जो किसी भय की तरह हमारे चारों ओर फैला है। इस वर्णन के द्वारा हम अपने समय को एक पाथोस की शक्ल में देखते हैं। तुम्हारे इस नये क़िस्म के वर्णन के अनोखेपन और इसकी जबरदस्त अर्थपूर्णता को सामने रखते हुए में बिना किसी डर के कह सकता हूँ कि अगर यह सारी कहानियाँ हिन्दी साहित्य तक भी पहुँच जायें, तो हिन्दी में भी एक नये स्टाइल की नींव पड़ सकती है।
-उदय प्रकाश

ISBN
9789350001899
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Vani Prakashan
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खालिद ज़ावेद (Khalid Javed)

"ख़ालिद जावेद - ख़ालिद जावेद 9 मार्च, 1963 को उत्तर प्रदेश के शहर बरेली में पैदा हुए। दर्शनशास्त्र और उर्दू साहित्य में एम.ए. करने के बाद चार वर्ष तक रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के अध्ययन से जुड़े रहे। पिछले सात वर्ष से जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली के उर्दू विभाग से जुड़े हैं। ख़ालिद जावेद की कहानियों का पहला संकलन 'बुरे मौसम में' के शीर्षक से वर्ष 2000 में प्रकाशित हुआ। इसमें संकलित कहानी 'बुरे मौसम में' को कथा अवार्ड दिया गया। अधिकतर कहानियों का अनुवाद भारत की कई भाषाओं में किया जा चुका है। कहानियों के अलावा ख़ालिद जावेद ने नज़्में भी लिखी हैं। साहित्य के अलावा दर्शन से उन्हें विशेष लगाव है। उनके लेखों का एक संकलन 'कहानी की मौत और आख़िरी विदेशी ज़बान' के नाम से प्रकाशित हो चुका है। समकालीन पाश्चात्य दर्शन के इतिहास पर उनकी एक किताब शीघ्र ही छपने वाली है। "

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