Ishq Musaafir
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ग़ालिब का एक मिसरा है'कहते हैं जिसको इश्क़ ख़लल है दिमाग़ का' लेकिन मेरा अपना ख़याल ये है कि इश्क़ आदमी को बावला ज़रूर बनाता है लेकिन कमीना नहीं होने देता। उस दौर में जहाँ हथियारों के ज़हरीले दाँत इन्सानियत को चबा रहे हों, हर सीने में कोई दर्द, हर ज़हन में कुछ उलझनें, हर माथे पर कुछ सिलवटें, हर आँख में कुछ बेचैन सवाल हों, दुनिया नफ़रत की यूनिवर्सिटी बनती जा रही हो, ऐसे हालात में कुछ ऐसे स्कूलों का चलते रहना बहुत ज़रूरी है जिनकी बुनियाद मोहब्बत हो। 'इश्क़ मुसाफ़िर' हर उस शख्स के लिए तोहफ़ा है जो प्यार करना भूल गया है, जिसे ज़िन्दगी ने रोबोट बना दिया है।