Jaanisar Akhtar (Ek Jawan Maut)
जाँनिसार अख़्तर : एक जवान मौत -
जॉनिसार ने अपने ख़त में लिखा है, 'आदमी जिस्म से नहीं दिलोदिमाग़ से बूढ़ा होता है।' वे वास्तव में आख़िरी दिन तक जवान रहे। ऐसा लगता था उन पर नये सिरे से जवानी ने करम फ़रमाया है। वह नौजवानों की तरह रात में देर तक चलनेवाली महफ़िलों और बाहर के मुशायरों में अपने आपको ख़र्च करते रहे।
कहते हैं मौत से पहले आदमी की इन्द्रियाँ मौत की ख़ुशबू सूँघ लेती हैं। शायद उनके साथ भी ऐसा ही हुआ। जाँनिसार ने ज़िन्दगी को इतना थम-थम के जिया था कि वह बाक़ी की आयु को क़तरा-क़तरा पीने के बजाय एक साथ पी कर ख़त्म कर देना चाहते थे।
ग़ज़लें, रुबाइयाँ, मुशायरे, सम्पादन, बहसें, महफ़िलें, फ़िल्मी गाने—यूँ लगता था वह ज़िन्दगी जी नहीं रहे बल्कि ज़िन्दगी से अपनी उम्र भर के अभावों का बदला ले रहे हों। ज़िन्दगी के साथ इस तरह के रवैये ने उनमें कुछ ऐसी मनोवैज्ञानिक उलझनें भी उभार दी थीं, जो पहले कभी उनका मिजाज़ नहीं थी। वह हर वक़्त किसी न किसी आईने के सामने रहना चाहते थे। उन्हें अपने खो जाने का अहसास हो गया था। इसीलिए हमेशा के लिए गुम होने से पहले वह अपने आपको हर पहलू से जी भर कर देख लेना चाहते थे।