Jahan E Rumi
कोई 800 साल पहले इस जहान में एक ऐसा जीव आया, जिसने मामूली सी इंसानी ज़िन्दगी को एक बहुत बड़ा अर्थ दे दिया ।
जीवन का ऐसा मार्ग दिखाया कि जिस पर जितना चलो, उतना ही जीने का मतलब समझ में आने लगे । इस महापुरुष का नाम है, सूफी सन्त कवि रूमी । मौलाना जलालुद्दीन मुहम्मद रूमी । इस सूफी सन्त ने पिछले 800 बरस में दुनिया के अनेक महापुरुषों के विचारों, उनके लेखन को प्रभावित किया है।
इनमें हमारे भक्तिकाल के कवि खासकर कबीर, जिनका जन्म रूमी के लगभग 250 साल बाद हुआ, पर इनका काफी प्रभाव दिखाई देता है। प्रसिद्ध शायर अली सरदार जाफरी ने 'कबीर बानी' की भूमिका में भी कहा है, '... इस जगह पर हिन्दू भक्ति और मुस्लिम तसव्वुफ का संगम अनिवार्य था। इसलिए बाज़ जगहों पर मंसूर की अनलहक की गूँज के अलावा जिसका ज़िक्र पहले आ चुका है कबीर की शिक्षाओं पर रूमी के विचारों का असर भी दिखाई देता है, जिसे उन्होंने हिन्दू भक्ति के ढंग से पेश किया है। वही प्रताप, वही बेचैनी, जो रूमी की ग़ज़लों की विशेषता है कबीर की मानवता का तत्त्व है...'
महाकवि अल्लामा इक़बाल तो रूमी को अपना उस्ताद और रहबर मानते रहे। वे मानते थे कि उनके सारे सवालों के जवाब रूमी की कविता में मौजूद हैं । इसकी मिसाल उन्होंने अपनी एक नज़्म 'पीर-ओ-मुरीद' में खुद ही पेश की है। इसमें पहले वे अपना सवाल पेश करते हैं और उसके बाद क्रम से रूमी की शायरी में मौजूद उनके जवाब पेश करते हैं । यह रूमी के सूफी कलाम का ही जादू है कि आज भोग-विलास और हिंसा में आकंठ डूबे अमेरिका जैसे देशों के साथ तमाम दुनिया के करोड़ों लोग इस सूफी फ़कीर की शरण में बैठे हुए दिखायी देते हैं ।