Jheel Mein Sone Ka Sikka

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झील में सोने का सिक्का  -  
यह निर्विवाद है कि इक्कीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक में ग़ज़ल के प्रति कवियों और उसके चाहने वालों का आकर्षण अपनी पराकाष्ठा पर है। दशकों तक व्यवस्था और सत्ता से संघर्षरत ग़ज़ल की दिशा और स्वर बदलने में अभीष्ट योगदान के लिए जिन ग़ज़लकारों ने सतत प्रयास किया है उनमें नवनीत शर्मा अग्रणी हैं। एक तरफ वे ग़ज़ल की समृद्ध परम्परा के ठोस धरातल पर अविचल खड़े होकर उसके आसमान में नये जीवन्त रंग भरने की कलाकारी में पारंगत हैं तो दूसरी तरफ़ अन्तिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति की दुर्दशा और विवशता के कारणों को चिन्हित करते हुए उसकी आवाज़ बनने और उसे आत्मोत्थान का मन्त्र देने में भी कुशल हैं। उनके अशआर एक साहसी यात्री की तरह कल्पना के पंखों पर सवार होकर विहंगम दृष्टि से तो आकलन और जीवन्त चित्रण तो करते ही हैं, एक खोजी और जिज्ञासु की तरह भी मनुष्य तथा समाज के ढाँचे और उनकी मानसिकता की महीन पेंचदार बनावट के गूढ़ सत्य के अन्वेषक की भूमिका में दिखाई देते हैं। इस गूढ़ सत्य के सौन्दर्य और विरोधाभासों के अन्तर्सम्बन्धों की सूक्ष्मता से महसूस करते हुए पूरी संवेदनशीलता के साथ उसकी बेबाक किन्तु लालित्यपूर्ण अभिव्यक्ति उनके अशआर की विशिष्टता है।
नवनीत शर्मा भाषा के आधुनिक स्वरूप को स्वीकारते हुए उसके सौन्दर्य में अभिवृद्धि के लिए उसके मुहावरे के साथ प्रयोग करने में भी प्रयासरत प्रतीत होते हैं। तग़ज़्ज़ुल से लबालब इन के अशआर में सजगता से चयनित शब्दों की सटीक स्थान पर उपस्थिति, वाक्यांशों की बनावट और पंक्तियों की प्रवाहमयता सहज ही मोह लेती है। नवनीत शर्मा एक सक्षम ग़ज़लकार हैं और सक्षम ग़ज़लकार की पहचान है कि वह प्रत्येक दो पंक्तियों के स्पेस में एक ऐसा दर्पण प्रस्तुत करे जिसमें सच्चाई के चित्र न केवल दिखें वरन उसमें झाँकने वाले प्रत्येक व्यक्ति से आत्मीय सम्बन्ध भी बना सकें। इन्हीं सम्बन्धों की बहुलता और प्रगाढ़ता शे'र के सौन्दर्य और शक्ति की परिचायक होती है। नवनीत शर्मा का यह पहला ग़ज़ल संग्रह अवश्य ही अपने कथ्य की नवीनता, विशिष्टता, विविधता और कलात्मक अभिव्यक्ति के कारण उन्हें अग्रिम पंक्ति के ग़ज़लकारों में स्थापित करेगा।—विजय कुमार स्वर्णकार

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