Kahat Rai Praveen

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"कहत राय प्रवीण - हिन्दी में मौलिक नाटकों का अभाव है। इसी कारण हिन्दी का रंगमंच अन्य भाषाओं के रंगमंचों की तुलना में पिछड़ता सा दिखाई देता है। इसलिए डॉ. दुबे साधुवाद के पात्र हैं कि वे निरन्तर नाटक लेखन करके इस अभाव को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। उनका लिखा नाटक उठो अहल्या काफ़ी चर्चित हुआ। साहित्यिक जगत में इसे अच्छा प्रतिसाद मिला। लेकिन विशेष बात यह है कि रंगकर्मी मित्रों ने भी उसका बहुत अच्छी तरह से स्वागत किया। अब तक उस नाटक के लगभग पचास प्रदर्शन हो गये हैं जो नाटक की श्रेष्ठता एवं मंचीय उपयोगिता की साक्ष्य देते हैं। कहत राय प्रवीण नाटक के माध्यम से उन्होंने राय प्रवीण के व्यक्तित्व को तो सबके सामने लाने की कोशिश की ही है साथ ही उन्होंने भारतीय नारी की अस्मिता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए किये गये संघर्ष को भी उजागर किया है। एक और विशेष बात यह है कि उन्होंने इस कृति के माध्यम से साहित्य की शक्ति की भी पुनर्स्थापना की है। जिस तरह राय प्रवीण अपने साहित्यिक कौशल से शहंशाह अकबर को हतप्रभ कर देती है वह रचनात्मकता के नये मानदण्ड गढ़ता है। कविश्रेष्ठ केशवदास ने राय प्रवीण को साहित्य की, कवित्व की शिक्षा देने के लिए कविप्रिया ग्रन्थ रचा था। कविश्रेष्ठ केशवदास ने यदि पुनिया को प्रवीण न बनाया होता तो हम सब साहित्य के एक ऐसे नक्षत्र को देखने से वंचित रह जाते जिसके लिए अपनी अस्मिता और अपना स्वाभिमान ही सब कुछ था। राय प्रवीण के इस नाटक के बहाने आशा है भविष्य में उनके जीवन और कृतित्व पर और अधिक शोध होगा तथा और अधिक प्रेरक सामग्री सामने आ पायेगी । राय प्रवीण सिर्फ एक नाटक ही नहीं, यह महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज़ भी है, जिससे हमें इतिहास को देखने की नयी दृष्टि मिलती है । रंगमंच पर इसके जितने अधिक प्रयोग होंगे यह कथानक और अधिक मज़बूत होकर उभरेगा । "

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