Kal Ki Thakaan

As low as ₹195.00
In stock
Only %1 left
SKU
9789387409989

समय की अमानुषिक घेराबन्दी जब जीवन जीने की गरिमा के लिए कोई अवकाश न छोड़ रही हो तो ऐसे में कविता का काम और अधिक ज़िम्मेदारी से भरा और अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाता है । सुपरिचित कवि पवन करण की ये नयी कविताएँ अपनी अनेक भंगिमाओं के साथ समकालीन समय की राजनीति, व्यवस्था - तन्त्र, नैतिक स्थापनाओं और मूल्य-प्रतिमानों पर सवाल उठाती हैं। वर्चस्व, हिंसा, दमन, कलह और असुरक्षा की स्थितियों के बीच इन कविताओं में अनुभव जगत् की एक सतत बेचैनी, उद्वेलन, क्लेश और प्रश्नाकुलता का ताना-बाना दिखायी देता है। ये कविताएँ एक दहकते हुए समय के ताप को झेलती हुई सामान्य मान लिए गये रोज़मर्रा में उन बहुत सारे अँधेरे, सुनसान, उपेक्षित, छूटे हुए, गुमनाम इलाक़ों में गयी हैं जहाँ समय बहु-स्तरीय है, कई बार अबूझ है और अनुत्तरित है। एक कवि के रूप में पवन करण कई तरह से अपने इस काम को अंजाम देते हैं। कभी कवि यहाँ अपने काव्य-कर्म में कहीं दी हुई स्थिति के ख़िलाफ़ सीधे किसी ज़िरह में उतर रहा है, कहीं सहज मान लिए गये किसी प्रसंग में वर्चस्व के निहितार्थों को उघाड़ रहा है, कहीं वाक्यों और घटनाओं में दृश्य-जगत् की किसी तफ़सील को रच रहा है, कहीं सत्ता-विमर्श के लिए मिथकों की दुनिया की ओर जा रहा है या फिर कहीं इस सबसे अलग ख़ौफ़नाक सच्चाइयों और नृशंसताओं के बीच किसी कोमलता, करुणा, मानवीय जिजीविषा, भरोसे, स्मृति और प्रेम की दुनिया को सिरज रहा है। स्थापित सत्ता-तन्त्र के विविध रूपों और उनमें समाये हुए पूर्वाग्रहों, रूढ़ मान्यताओं, विधानों, एकाधिकारों और दमन के रूपों के निरखने और उनका अतिक्रमण करने की कवि की एक ज़बर्दस्त सजगता है। अपनी वस्तु के लिए वह केवल बाहर के दृश्य - जगत् को ही नहीं देखता, बल्कि कई बार तो सदियों की परम्परा से पोषित अपने मानस की पड़ताल करता भी दिखाई पड़ता है। यह वस्तु जगत् के बोध और आत्म-सजगता के मिलन का उच्चतर स्तर है । विडम्बनाओं, विरोधाभासों और शोकाकुल इलाक़ों से गुज़रते हुए कवि की आवेगधर्मी, विक्षुब्ध, अशान्त मनःस्थिति इन कविताओं को बहुत पठनीय बना देती है । पर इससे भी आगे समकालीन काव्य-परिदृश्य में पवन करण की उपस्थिति इसलिए भी उल्लेखनीय है कि प्रतिरोध के अपने संसार को उन्होंने केवल मूल्यहीनता के घटनाक्रमों और वृत्तान्तों में ही नहीं, बल्कि प्रेम, चाहत, करुणा, उछाह, उत्ताप, ऊष्मा, बाँकपन, अपनत्व और स्मृति के मनोभावों के साथ भी बुना है। 'मूक बधिर बच्चे' जैसी कविता सम्भवतः समूचे समकालीन काव्य-परिदृश्य में एक विरल कविता कही जायेगी। यह वह समय है जब सबसे मामूली क्रियाओं के तिलिस्म भी हमसे छूटते जा रहे हैं। यहीं आज एक अच्छे कवि का रचनात्मक-संघर्ष है। मैं समझता हूँ कि अपने समय के बहुस्तरीय बोध के लिए इन कविताओं को पाठकों का अच्छा रिस्पॉन्स मिलेगा।

-विजय कुमार

Reviews

Write Your Own Review
You're reviewing:Kal Ki Thakaan
Your Rating
Copyright © 2025 Vani Prakashan Books. All Rights Reserved.

Design & Developed by: https://octagontechs.com/