Kanchanjangha Samay

As low as ₹200.00
In stock
Only %1 left
SKU
9789326355575

कंचनजंघा समय - 
समकालीन कविता के परिदृश्य में, जो क्षरण की ज़द में है—वो है प्रकृति और पर्यावरण। प्रकृति प्रेम की कविताओं का संसार भी लगातार सिकुड़ रहा है। लेखकों में यायावरी का स्वभाव भी पिछले दशकों में बनिस्पत कम हुआ है। एक ऐसे दौर में कंचनजंघा की मौलिक छवियाँ इस संग्रह को मूल्यवान बनाती हैं क्योंकि इसमें भूमण्डलीकरण के बाद हुए नकारात्मक परिवर्तनों में प्रकृति के विनाश की गहरी अन्तर्ध्वनि समाविष्ट है।
'कंचनजंघा समय' में अनूठे बिम्बों की आमद है जैसे धूप कुरकुरी, सर्दी में ठिठुरता पत्थर, झुरमुट से झरती स्वर रोशनी, गूँज से निर्मित अणु-अणु, रोटी की बीन, पेड़ के सुनहले टेसू, परती पराट, पतझड़ की बिरसता, छन्द का चाँद, रंग हरा नहीं भूरा आदि। इस संग्रह में आकर्षित करनेवाली नवीन शब्द राशि भी है।
कवि की सीनिक दृष्टि की तरलता, विचार की ऊष्मा और सृष्टि के प्रति गहरा राग दृष्टव्य हैं। 'कंचनजंघा' पर आगत ख़तरों की चेतावनी इस कृति को प्रासंगिक बनाती है। उम्मीद है यह विरल प्रकृति प्रतिबद्धता पाठकों को पर्यावरण दृष्टि से सम्पन्न करने में छोटी ही सही, एक भूमिका का काम करेगी।

Reviews

Write Your Own Review
You're reviewing:Kanchanjangha Samay
Your Rating
Copyright © 2025 Vani Prakashan Books. All Rights Reserved.

Design & Developed by: https://octagontechs.com/