Kanva Ki Beti
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9789388434355
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‘कण्व की बेटी’ का उपन्यासकार अपनी कहानी में दुष्यन्त के अहंवादी और प्रमादी पौरुष पर पूरी ताकत से चोट करता है और असहाय शकुन्तला के बरअक्स एक निर्भीक और स्वाभिमानी शकुन्तला को खड़ा करता है। एक बार दुष्यन्त द्वारा प्रणय-यात्रा के मँझधार में अकारण छोड़ जाने के बाद ‘कण्व की बेटी' का स्वाभिमान जग जाता है। गर्भवती शकुन्तला इस वंचना की चुनौती स्वीकार कर समाज से न्याय लेने को तनकर खड़ी हो जाती है। दुष्यन्त द्वारा अपनी भूल की क्षमा माँग लेने पर भी उसे रिक्तपाणि लौटा देने वाली शकुन्तला हमारे चुनौतीपूर्ण समय की नयी नायिका है। समाज से अपना स्वाभिमान छीनकर लेने वाली ‘कण्व की बेटी' इस विडम्बनापूर्ण समय को दी गयी चेतावनी है।
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sfasdfsdfadsdsf
9789388434355