Kaun Hun Main
कौन हूँ मैं' जोशी की ऐसी महत्त्वाकांक्षी - औपन्यासिक कृति है जिसे वह प्रकाशित रूप में नहीं देख सके। अपने आखिरी दिनों में वे इस उपन्यास को पूरा करने में लगे थे ।"
लाजवाब किस्सागोई के साथ अचूक व्यंग्यात्मकता जोशी जी के लेखन की विशेषता रही है । उनके इस नवीनतम उपन्यास में किस्सागोई का जादू तो है, पर जिसे कहते हैं व्यंग्यात्मकता वह दुनिया के पेच-ओ-खम में उलझे उपन्यास के नायक के जीवन में इस तरह आती है कि सिर्फ हँसने से काम नहीं चलता। यहाँ एक विराट विडम्बना से साक्षात्कार होता है, जो नायक को जिन्दगी के ऐसे मोड़ पर ला खड़ा करती है जहाँ उसे पूरी दुनिया मृत मान चुकी है और उसे अपने जीवित होने को सिद्ध करने के लिए अन्ततः न्यायालय की शरण लेनी पड़ती है ।
ब्रिटिशकालीन बंगाल में अवस्थित भवाल राजपरिवार के मेजोकुमार की अविश्वसनीय कथा, मृत्यु के बाद जिसका शव चिता से गायब हो गया और बरसों बाद जब एक साधु ने खुद के मेजोकुमार होने का दावा किया तब सम्पत्ति और सम्बन्धों के ताने-बाने में उलझी एक ऐसी गाथा का उद्घाटन हुआ जिसने पूरे देश को रोमांचित कर दिया।