Kedarnath Agrawal Sanchayan

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केदारनाथ अग्रवाल संचयन - 
केदारनाथ अग्रवाल हिन्दी की धारा के अनन्यतम कवि हैं—निराला की भाषागत तथा वस्तुगत यथार्थ की परम्परा को आगे बढ़ानेवाले अग्रणी कवि। उन्होंने हिन्दी कविता को कल्पना की कोमलकान्त पदावली की दुनिया से बाहर निकालकर उसे भाषा और अन्तर्वस्तु के धरातल पर असलियत की कठोर, खुरदरी और भदेस दुनिया में चलना सिखाया, ऐसी दुनिया में जहाँ माटी और श्रमस्वेद की पवित्र गन्ध मिलती है। कहना होगा कि केदारजी पारम्परिक काव्य शास्त्रीय कवि नहीं हैं, न ही निरे भावुकतावादी, बल्कि वे एक सचेत, सजग, चिन्तनशील तथा कलाप्रेमी कवि हैं।
केदारजी की कविताओं का फलक बहुत विशाल है। उन्हें किसी एक विषय की सीमाओं में नहीं बाँधा जा सकता। उनकी कविता में प्रकृति, प्रेम, सौन्दर्य तथा ऐन्द्रिकता के अनेक मोहक और मनुष्य सापेक्ष बिम्ब मिलते हैं तो श्रम का सौन्दर्य, न्यायतन्त्र की खामियाँ, दलितों व वंचितों की चेतना में मायूसी की जगह आत्मविश्वास एवं संघर्ष का स्वाभिमान भी झलकता है। इन सारे विषयों को हमारी संवेदना और चेतना का अनिवार्य हिस्सा बनाने के लिए वे ऐसे अनेक अछूते बिम्बों और उत्प्रेक्षाओं का एक नया संसार रचते हैं जो उनकी पीढ़ी, उनके पूर्ववर्ती और परवर्ती किसी एक कवि में शायद ही मिले।
केदारनाथ अग्रवाल की ख्याति एक कवि के रूप में ही है। वह भी अपने को मूलतः कवि ही मानते हैं गद्यकार नहीं, जबकि परिमाण की दृष्टि से उनका गद्य कविता से कतई कम नहीं है। उपन्यास, कहानी, नाटक, रेखाचित्र, लेख, आलोचना, पत्र आदि गद्य की ऐसी कोई विधा नहीं जिसमें उनकी सशक्त लेखनी न चली हो। प्रस्तुत संकलन में कविता के साथ-साथ उनके गद्यलेखन की प्रामाणिक बानगी अवश्य मिलेगी। इस प्रकार एक सम्पूर्ण केदारनाथ अग्रवाल इस संकलन के माध्यम से पाठक की चेतना में निरन्तर बने रहते हैं।

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