Kisi Apriya Ghatna Ka Samachar Nahin
As low as
₹299.00
In stock
Only %1 left
SKU
9789357758529
"सुबह की सैर से वह रिटायर्ड जज साहब लौटे, तो ठिठककर चौक पर खड़े हो गये। किनारे पर लगे लगभग सौ साल बूढ़े पेड़ पर कुछ मज़दूर चढ़े, इसकी शाखाएँ, तने काट रहे थे। इसके साये में रेढ़ीवाला बाबा चाय-सिगरेट की रेढ़ी लगाता है, रिक्शावाले धूप-बारिश से बचने के लिए ओट लेते हैं, लोकल बस पकड़ने के लिए लोग, स्कूली बच्चे-बच्चियाँ खड़े होते हैं। आज इसी पेड़ को काटा जा रहा है।
जज साहब ने एक सिपाही से पूछा कि पेड़ क्यों कटवाया जा रहा है? सिपाही आवाज़ से, सवाल पूछने के ढंग से ही समझ गया कि कोई अफसर होगा। नौकर की नाक हमेशा तेज़ होती है, सूँघकर ही मालिक को पहचानने में निपुण। उसने बताया कि दिल्ली से स्कोरटीवाले आये थे। पेड़ इतना बड़ा और घना है कि इस पर छिपकर कोई भी बैठ सकता है, इसलिए ऑर्डर दिया कि इसे काट दो। काट रहे हैं।
वे दोनों वहाँ से आगे निकले। जज साहब ने कहा - ""आपको पता है, इस पेड़ की क्या उम्र होगी?"" उसने 'न' में सिर हिलाया। ""जितनी उम्र इस छावनी की है, सौ साल से ऊपर । अंग्रेज़ बाहिर से आये थे, फिर वे भी देश की गर्मी से वाकिफ हो गये। सड़क के किनारे सायेदार पेड़ लगवाये-शीशम, नीम, पीपल। अब हाल देखिए... यहाँ से दिल्ली तक कोई सायेदार पेड़ नहीं मिलेगा। बस, लगाइए युक्लिप्टस, बेचिए, पैसे कमाइए। सरकार एक दुकानदार हो गयी है, सिर्फ मुनाफे के लिए खोली गयी दुकान..."" वह अपनी कोठी के गेट के पास रुके। उसे पता है, अपनी बात का निचोड़-वाक्य कहेंगे, आदतन । जज साहब उदास आवाज़ में बोले, आशाहीन आवाज़ में, 'देश एक सायेदार पेड़ होता है। कश्मीर से यह पेड़ कटना शुरू हुआ, पंजाब में कट रहा है, कन्याकुमारी तक शायद जल्दी ही कट जाये। तब लोग ज़िन्दा तो रहेंगे क्योंकि उन्हें ज़िन्दा रहना है, लेकिन यह ज़िन्दगी बिना सायेदार पेड़ की ज़िन्दगी होगी, हमेशा तपती, झुलसती हुई ज़िन्दगी। और वह अपने घर की ओर मुड़ गये, बिना हाथ मिलाये या अलविदा कहे।
-इसी पुस्तक से"